भुंजा गे हन
भुंजा गे हन
मंहगाई के आगी म
का नइ लेवन, का ला लेवन
जुरहा-जुरहा भागी म
तिर-तिर म जतका दुकान हवे
लइकन के अरमान हवे
गोली, बिस्कुट- सोनपपड़ी ह
रूंघे के सामान हवे
यू हू घलो बड़ दुरिहां हे
मिले नहीं ये मांगी म
मर- मर के कतको कमावत हन
नइ जानेन कहॉं उड़ावत हन
सोन मछरी कस बिछ्छल हवे
हाथ आये ल गंवावत हन
घर- कुरिया के नइये ठिकाना
कुरता सनाये हे दागी म
तरकारी कइथे तैं झन लेना मोला
जुच्छा के जुच्छा लहुट आथे झोला
ऑंखी मझुलत हवे साग- भाजी
संगवारी छेकत हे पियाना तैं मोला
नहीं केहे म संग छुटत हे
दार भुलागे लागी म.
भुंजागे हन
मंहगाई के आगी म. ़
गोंदली टमाटर के गोठ नइयें
खीसा म इंकर बर नोट नइये
तेल- फुल चुपरे महीना होगे
चुंदी- मुड़ी चिटपोट नइये
हलर- हलर कनिंहा कटार होगे
सुवारथ नइये पागी म
छत्तीसगढ़ी कविता - के ़ आर ़ मार्क़ण्डेय
मंहगाई के आगी म
का नइ लेवन, का ला लेवन
जुरहा-जुरहा भागी म
तिर-तिर म जतका दुकान हवे
लइकन के अरमान हवे
गोली, बिस्कुट- सोनपपड़ी ह
रूंघे के सामान हवे
यू हू घलो बड़ दुरिहां हे
मिले नहीं ये मांगी म
मर- मर के कतको कमावत हन
नइ जानेन कहॉं उड़ावत हन
सोन मछरी कस बिछ्छल हवे
हाथ आये ल गंवावत हन
घर- कुरिया के नइये ठिकाना
कुरता सनाये हे दागी म
तरकारी कइथे तैं झन लेना मोला
जुच्छा के जुच्छा लहुट आथे झोला
ऑंखी मझुलत हवे साग- भाजी
संगवारी छेकत हे पियाना तैं मोला
नहीं केहे म संग छुटत हे
दार भुलागे लागी म.
भुंजागे हन
मंहगाई के आगी म. ़
गोंदली टमाटर के गोठ नइयें
खीसा म इंकर बर नोट नइये
तेल- फुल चुपरे महीना होगे
चुंदी- मुड़ी चिटपोट नइये
हलर- हलर कनिंहा कटार होगे
सुवारथ नइये पागी म
छत्तीसगढ़ी कविता - के ़ आर ़ मार्क़ण्डेय
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