गुरू घासीदास जी के दुनिया ल पैगाम


घट- घट म बसे सतनाम
मनुष तन जान ले एेला
धरती सबो के धाम
मनुष तन मान ले एेला.

काहे जग म भेद करे जी
काहे रार मचाये
कोनो ल तैं गिनहा जाने
कोनो ल घेंच लगाय
ये सांचा नोहे काम

अपन पीरा ल सब जाने
दूसर बर गाज गिराय
चारेच दिन के जिनगानी हे
फेर काबर इतराय
दिन ढरत होथे ग शाम

स्वारथ के दुनिया म संगी
मानवता हे रोय
कथनी तो कथनी रहि जाथे
करनी एके होय
बिना एकर सब हे बेकाम

संत के बानी म शानी हे
सबके हित समाय
जियो रे भइ सुन्दर- सुघ्घर
कोनो दुःख झन पाय
गुरू घासी के हे पैगाम

- के. आर. मार्कण्डेय


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