सतनाम सुमर नर प्यारे

सतनाम सुमर नर प्यारे
नक़ुल ढीढी के संग मा
तोर छाती म अगिन समाही
अउ भक्ति बही रग- रग मा

सतनाम ला सुमरन कइसे
येकर कला नइ जाने
ज॒गा- जगा तोर माथा झुकगे
माने तैं आने- आने
डर छाये हे पग- पग मां

सतनाम के सांचा सुमरन
अरे कहां तैं पाबे
अंधरा, कनवा, लंगड़ा- लुलवा
दरशन तैं बिसराबे
कहां भूले हस ठग- जग मा

नकुल ढीढी के कहना हे
भक्ति के धारा अइसे हो
छल- कपट, भेद ल दूर करे
सब बस्तीं- पारां अइसे हो
सत ज्योति बरे नग- नग मा

- के. आर. मार्कण्डेय



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