माेला कहना हे

मोला कहना हे
मोला करना हे
तुंहर बर भाई
एको दिन मोला मरना हे.

तुम टुकुर- टुकुर देखत रइथौ
सौ- सौ रोज जुलुम सहिथौ
तुंहर असन नइ सहना हे

तुम जानत हव फेर नइ बोलव
मूंदे हव ऑंखी नइ खोलव
तुंहर बर उघरे रहना हे

तुम अपन दुवारी म सीमित हव
परशंसा, पर चारी म भरमित हव
तुंहर असन नइ रहना हे

तुम जागे के बेरा, सोवत  रइथौ
फेर करम ठठाके, रोवत रइथौ
तुंहर असन नइ रोना हे

तुम लड़थौ घलो, तब अपने संग
कभु दाई संग, कभु भाई संग
तुंहर असन नइ लड़ना हे

तुम पढ़ थव तब, पोथी पढ़ थव
ज्ञानी- ध्यानी, पंडित बन थव
तुंहर असन नइ बनना हे
- के. आर. मार्कण्डेय

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