बारूद के ढेरी म बइठे हे दुनिया

ये दुनिया ल तबाही के
ओर झन बढ़ावव ग
लड़े-भिड़े बर जादा
जोर झन लगावव ग

चाकू- छुरी लानेव त
हसिया बिगड़ गे हे
पानी बिगड़ गे हे
पसिया बिगड़ गे हे
मतलाहा तरिया म
बूड़ झन नहावव ग
काला- काला खोजत हव
अउ का, का ब॒नावत हव
पिरथी ल पोल- पोलहा
तुम काबर बनावत हव
भुज- लातुर कहुं
झन तुम बलावव ग

बारूद के ढेरी म
बइठे हे दुनिया
मद म मतंगी
अउ  अइठे हे दुनिया
भर के उड़ा जाही
आगी झन लगावव ग
- क
- के. आर. मार्कण्डेय



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