संत शिरोमणि गुरू घासीदास

भारत के इतिहास गगन में
देदिप्यमान एक नाम है
छत्तीसगढ़ के गुरू घासीदास जी
जिनको शत सतनाम है

जन्म 18 दिस.1756
 प्रथम जयंती 18 दिस. 1938
ग्राम भोरिंग , महासमुन्द छ.ग.

स्वर्ण अक्षरों से लिखा है
भारत के इतिहास में
सतनाम काअलख जगाया
सद् गुरू घासीदास ने

अपना जीवन आपने
जन हित में अर्पण किया
मानव मन से भेद मिटाने
निज तन का समर्पण किया

सच्ची साधुता आपकी
था सत् सम्यक ज्ञान आपको
सत आदर्श गुरू देव जी
रहे हैं जन- जन मान आपको


जन्मभूमि गिरौदपुरी
आप मंहगू के संतान
सत्रह सौ छप्पन में जन्मे
सद् गुरू आप महान

करूणा उर्फ अमरौतिन
मंहगू की सह धर्मिणी थी
घासीदास सुत उद् भट ज्ञानी
एक वही तो जन्मी थी

छत्तीसगढ़ का यह धरा धाम
था एक पिछड़े राज
घासीदास जी चरण दिये
उन्नत हुआ समाज

स्वार्थ वश कुछ लोगों ने
ढोंग बहुत रचाये थे
निज को द्रष्टा कह करके
कु संस्कार फैलाये थे

वेद व्याख्या करने में वे
चाव बहुत दिखलाये थे
निज स्वार्थ के हेतु
जन- जन में भेद कराये थे



ऐसे अवसर में ज्ञान दीप बन
प्रगटे घासीदास
दृढ़- संकल्पी महा मानव
करने भेद-भाव का नाश

बाबा जी का जन्म हुआ
उन्होंने जन कल्याण किया
छत्तीसगढ़ से सकल विश्व को
सत का सम्यक ज्ञान दिया

ज्ञान- योग और नीति का
आप में सुन्दर समन्वय था
जीवन का हर क्षण आपने
जनहित में किया व्यय था

गली- गली और गाँव-गाँव में
जो श् वेत धजा लहराता है
समता का उपदेश लिये
आपका मार्ग सुझाता है
- के. आर. मार्कण्डेय


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