सतनामी तुम जागव, दुनिया जाग गे हे
सतनामी तुम जागव
दुनिया जाग गे हे
दगर- दगर अंगार बरत हे
सब अँधयारी भाग गे हे
तन के चिरहा- फरिया,चेंदरा
फेके बर हे घुरवा में
नवा छांट के बरतन ले ले
पानी झन पी चुरवा में
पानी के महिमा तुम जानो
पानी जाग गे हे
जांगर म जतका बल हे
सुध अनुमान करव तुम
आज समय़ के संग चले बर
खुद ऐलान करव तुम
माटी के महिमा तुम जानो
माटी जाग गे हे
हाथ के रेखा, करम के लेखा
बदले बर हे तुंहला
अपन- अपन मन भीतरी के
मेटे बर हे धुंधला
शनि गिरहा के पोथी पतरा
दुरिहा भाग गे हे
चार कदम तुम मिल के रेंगव
झकनाही दुनिया के लोग
सुमत के तुम गोठ चलावव
छंटयाही अँधयारी रोग
सुनता के सुर सब जागे
बिनता भाग गे हे
आशा के तुम दिया बारो
मन उजियार करो
बेरा के पाँखी ल चीन्हौ
झन ढेर ढार करो
बेरा के महिमा तुम जानो
बेरा जाग गे हे
बड़ महिनत से फल मिलही
बाना बांध झन डरना
कोनो चाहे लाख लड़ावे
आपस में नहीं लड़ना
महिनत के फल होथे मीठा
झगरा भाग गे हे
बड़े- बड़े तुम पद म बइठो
गरब कभू झन करना
दुखिया के दुःख दूर करे बर
सीना तान के लड़ना
तुंहर लड़े ले अइसे लागे
वीरता जाग गे हे
का करना हे आगे दिन म
नियम बनावव तुमन
मनखे ल सब मनखे माने
धरम चलावव तुमन
सतनाम गुरू अमरित बानी
मन लवनी लाग गे हे
- के. आर. मार्कण्डेय
दुनिया जाग गे हे
दगर- दगर अंगार बरत हे
सब अँधयारी भाग गे हे
तन के चिरहा- फरिया,चेंदरा
फेके बर हे घुरवा में
नवा छांट के बरतन ले ले
पानी झन पी चुरवा में
पानी के महिमा तुम जानो
पानी जाग गे हे
जांगर म जतका बल हे
सुध अनुमान करव तुम
आज समय़ के संग चले बर
खुद ऐलान करव तुम
माटी के महिमा तुम जानो
माटी जाग गे हे
हाथ के रेखा, करम के लेखा
बदले बर हे तुंहला
अपन- अपन मन भीतरी के
मेटे बर हे धुंधला
शनि गिरहा के पोथी पतरा
दुरिहा भाग गे हे
चार कदम तुम मिल के रेंगव
झकनाही दुनिया के लोग
सुमत के तुम गोठ चलावव
छंटयाही अँधयारी रोग
सुनता के सुर सब जागे
बिनता भाग गे हे
आशा के तुम दिया बारो
मन उजियार करो
बेरा के पाँखी ल चीन्हौ
झन ढेर ढार करो
बेरा के महिमा तुम जानो
बेरा जाग गे हे
बड़ महिनत से फल मिलही
बाना बांध झन डरना
कोनो चाहे लाख लड़ावे
आपस में नहीं लड़ना
महिनत के फल होथे मीठा
झगरा भाग गे हे
बड़े- बड़े तुम पद म बइठो
गरब कभू झन करना
दुखिया के दुःख दूर करे बर
सीना तान के लड़ना
तुंहर लड़े ले अइसे लागे
वीरता जाग गे हे
का करना हे आगे दिन म
नियम बनावव तुमन
मनखे ल सब मनखे माने
धरम चलावव तुमन
सतनाम गुरू अमरित बानी
मन लवनी लाग गे हे
- के. आर. मार्कण्डेय
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