नया साल आया है

आज नया साल आया है
नव प्रभात आया है
सृजन की बेला में
एक बार फिर हांका पार के
हमें प्यार से जगाया है

चाय छोड़ने बात
साथी कर रहे थे कार में
ग्रीन टी उफनती
आ रही है बाजार में
शक्कर की राजधानी
थर्राया है
नव प्रभात आया है

वही पीपल की छांव
उजड़ती अमराई है
थके- हारे लोग वही
उनींदी तरूणाई है
नदी के चौड़े  कछार पर
धूप कुछ आई है
ठिठुरती जाड़ों में
जैसे कोई नहाया है
नव प्रभात आया है

स्वागत है आगत का
फटाका फोड़ दो
हाड़ी उपास है
टूरा उदास है
इन से क्या लेना
छोड़ दो
दबी- दबी आस है
हाय- हलो एप में छाया है
नव प्रभात आया है

कल तक झेले हैं
तो आगे भी झेलेंगे
जीवन है खेल तो
आगे भी खेलेंगे
मिलेगी मुसीबत तो
बढ़कर के ले लेंगे
संघर्षों ने ही तो
सबको बढ़ाया है
नव प्रभात आया है
- के. आर. मार्कण्डेय

Comments

Popular posts from this blog

श्री नकुल देव ढीढी का जन्मोत्सव

शिव भोला