तोर मया के चढ़े हे बोखार

आरो लेवत रहिबे मोर
एक अकेला हंव कोनो नइये मोर
तोर मया के चढ़े हे बोखार
दवा- पानी तैंहा करत रहिबे मोर

धड़क- धड़क मोर छाती करत हे
टप- टप माथा ल पसीना चूहत हे
घड़ी- घड़ी, मीठा- मीठा प्यास लगे हे
नैना मिलन के आस लगे हे
रहि- रहि करत हे गोहार

तोर देखे- भाले ले जिनगी संवरथे
जर- जुड़ी वाले जम्मों पीरा ह हरथे
मन ल निराशा के जाला ह झरथे
मया के मन बगिया झुमरथे
फुले- फुले लगथे बहार
जुग- जुग मया करत रहिबे
- के. आर. मार्कण्डेय

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