अमृत वाणी

" मनुष्य जन्म से ही  न तो मस्तक पर तिलक की छाप लिये  आता है, न गले में यज्ञोपवीत.  जो सत्यकर्म करता है, वह मनुष्य है और जो कुकर्म करता है, वह नीच है , चाहे उसकी जाति जो हो.   गौतम बुद्ध

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