खोजे न मिलेगा रोशनी का दिया, अप्प दीप भव

मांजते ही रहो सदा
अक्ल की धार को
भोथरा न हो यह
रहे नित नया .


खुश तो रहो पर
यह ख्याल हो
मुसीबत कभी न
दिखाती दया

लाखों तरह के
झमेले मिलेंगे
जिससे रिश्ते सदा
बिखरते गया

स्वार्थ  की रीत
हावी रहा है यहाँ
इन्सानियत इसी से
सिमटते गया

लाखों लड़ाने वाले
मिल जायेंगे
खोजे न मिलेगा
रोशनी का दिया


अक्ल का अक्श ही
मशविरा है तेरा
राह से रोड़ों को
हटाते गया.

- सा. के. आर. मार्कण्डेय

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