संत प्रवर रैदास

हे संत प्रवर रैदास
दीन- दुःखी अउ टूटे मनके
एक प्रबल विश्वास

काशी म तोर जनमन होइस
रघु राजा के वंशज
जाति- धरम म तोला जानिन
चार बरन ल अंतज
सबके गरब करे हो नाश

तोर भगति म साहेब रीझे
मन ल बनायेव चंगा
तोर कठौती ले परगट होइस
बेटी बनके गंगा
तोर महिमा हे कैलाश

कठिन परीक्षा ले ये हे तोर
मनखे मन दुरजन ह
पानी में साहेब तंउरे हे
देखे हे जन- जन ह
जग म करेव परकाश

पारस ल तुम पथरा जानेव
खोंच देयेव छप्पर म
ज्ञान के दौलत जग ल बाटेव
सब आइन तोर शरण म
बन गेव सबके आस

रानी झाला , मीरा  बाई
तोर शरण म आये हे
चित्तौड़ नगर के शोभा बढ़गे
तोला गुरू बनाये हे
तोर छतरी बने हवे इतिहास
- सा. के. आर. मार्कण्डेय

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