छत्तीसगढ़ के भुइंया बघवा के माढ़ा

तेंदुसार के लउठी ,
अखरा म खाड़ा हे
ये छत्तीसगढ़ के भुइंया ,
बघवा के माढ़ा हे

तपसी , दानी , उद्भट ज्ञानी
मन के भुइंया ये
वीरनारायण सिंह के
बलिदानी भुइंया ये
पसिया पीने वाला तन में
वजनी हाड़ा हे

इहां के माटी धरम धाम कस
अतिशय पावन हे
देव बरोबर दाई- ददा के
धुर्रा चंदन हे
सबे धरम के , सबे जात के
इहां जमाड़ा हे

जेकर बल जादा होथे
वो सदाचार म रहिथे
ऊंच- नीच , मंगल- सोहर
बोली- बात ल सहिथे
छत्तीसगढ़िया तन के
बस इहि पहाड़ा हे

तन में इहां लंगोटी पहिरे
मन म नाम धरे हे
छाता पहाड़ी के साधु
साँचा सतनाम करे हे
धजा- पताका सेत रंग के
ठंव- ठंव गाढ़ा हे

गोड़वानी, पंडवानी , करमा
सुवा ददरिया हे
लोरिक बरिघना , आल्हा के
सब राग गवइय्या हे
फगुनाही रंग झाझर में
नित गमके नगाड़ा हे

गुरतुर बोली , सिधवा बानी
फेर तन म लहु हवे गा
जे दिन माटी मांग लिही
वो दिन धार बही गा
सबर के बांधा उथली नइये
अड़बड़ दाहरा हे
रचना दिनांक 22.01.2000 सा. के. आर. मार्कण्डेय

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