तोर चरणों के धूलि महान हे नकुल देव ढीढी

नकुल देव ढीढी
तोर चरणो के धूलि महान हे
तोर छाती म अगनि बान हे
अउ वाणी म गुरू के ज्ञान हे

तुम मनखे म वो मनखे अव
जगत वन्दनीय ल खोजे हव
काकर वन्दना जग म होवय
एक तम्हीं तो सोचे हव
तोर सोच के ये गुणगान हे

सरी दुनिया ल एक करइय्या के
पतवार बनेव उहि नइय्या के
गुरू अउ भीम गरजना संग
तुम पीर हरेव हव भुंइया के
सब देवता मन अन्जान हे

तोर नाम बिना हम आधा हन
का होइस थोकिन जादा हन
सरवर जल निरमल नइये
मतलाहा खुदु - खादा हन
तोर मेर हमर परान हे.
- सा. के. आर . मार्कण्डेय

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