चल- चल रे संगी मोर

चल- चल रे संगी मोर
चल- चल रे संगी मोर
कनक पिसान , दार अउ चांउर
आही जांगर टोर

खांध म गैंती- रापा धरले
मुड़ म बांध ले पागा
खेती ल रोजगार बनाबो
तिरयाही सब लागा
बड़े बिहिनियां उठ के जाबो
आबो सुरूज बोर

महिनत वाले अन हम पगली
महिनत से का डरना
महिनत ल जिनगी के गाड़ी
सीखेन पार उतरना
का होइस लाटा- फाँदा हे
लाखों लाख करोर

तैं महिनत कस राजी मोला
महुं मजदुर के बेटी अंव
तरिया- नदिया , बाग- बगैचा
छत्तीसगढ़ के खेती अंव
पड़की , सुवा- ददरिया मन ह
बहिनी आवे मोर

- सा. के. आर. मार्कण्डेय



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