मैं तरिया नहाये नइ जावंव

मैं तरिया नहाये नइ जावंव
असनाने के लइक नइये पानी
मार बज- बज, काई अउ बिस्सर
नाक नइ ठहरे मोरो भवानी

उहि मेर पड़वा , उहि मेर बइला
उहि मेर मनखे नहावत हे
लइका के कथरी , बहुरिया के कपड़ा
ददा परिया ले जम्मो धोवावत हे
जेला देखत हे बड़े- बड़े ज्ञानी

कुल्ला करे के पुरतन नइये
बिल- बिल ल कीरा समाये हे
कब होही दाई मोर तरिया सफाई
कते मेर उजला छेकाये हे
सबे तरिया के एके कहानी

तरिया नहाये म फोरा परत हे
खजरी होवत हे बदन म
पींयर- पींयर जीव लेवा बीमारी
सचरथ हे तन- तन म
ये रोग बड़ा अभिमानी

- सा. के. आर. मार्कण्डेय

Comments

Popular posts from this blog

श्री नकुल देव ढीढी का जन्मोत्सव

शिव भोला