कहाँ जाबे संगी बताना रे

तोर जीव के अधारा
धरती बेच डारे
कहाँ जाबे संगी
बता ना रे

दाई- ददा के कहना भुलागे
जग उभरौनी म कइसे तैं आ गे
पग- पग ठोकर खा ना रे

भाई- बंद बस्ती के मया नइ जाने ग
पसर भर पइसा म बनगे बिराने ग
का होय अब पछताना रे

यूपी बिहार जाना ले लेबे किसानी ग
देख लेबो हमु कइसे होथे तोर मानी ग
थोथना ल झन ओरमाना रे
- के. आर. मार्कण्डेय

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