चलना चले परदेश
ये गुंइया रे
चलना चले परदेश
पारा- बस्ती , पीपर गस्ती
मन ल देवत हे कलेष
ये बस्ती म अब का राखे हे
मया के सरोवर मतलागे हे
लगे हे करेजवा म ठेस
बेरा परे म इहां , सबे छरियागे
तीरे- तीर राहे उहू , मन दूरियागे
हँसि- हँसि देखत हे बिसेस
घर भीतरी म देखेन , बइरी के बासा
करके बिगाड़ सरी , देखथे तमाशा
जेमा गाड़ा- गाड़ा भरे हे संदेश
- सा. के. आर. मार्कण्डेय
चलना चले परदेश
पारा- बस्ती , पीपर गस्ती
मन ल देवत हे कलेष
ये बस्ती म अब का राखे हे
मया के सरोवर मतलागे हे
लगे हे करेजवा म ठेस
बेरा परे म इहां , सबे छरियागे
तीरे- तीर राहे उहू , मन दूरियागे
हँसि- हँसि देखत हे बिसेस
घर भीतरी म देखेन , बइरी के बासा
करके बिगाड़ सरी , देखथे तमाशा
जेमा गाड़ा- गाड़ा भरे हे संदेश
- सा. के. आर. मार्कण्डेय
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