छत्तीसगढ़ी गीत कोन जनी

कोन जनी काबर तैं नराज हवस
तोर नराजी घलो मनभावन हे
मीठा- मीठा बोली हम भर पाये हन
करु भाखा घलो तोर सुहावन हे

तैं बलाये रेहे , मैं नइ आयेंव
तोर शोर संदेशा , नइ पायेंव
नइ जानेव के , तोर बुलावन हे

ऐति देख तो मैं , का लाये हंव
बड़ा मुश्कुल ले , मोती पाये हंव
मानो तो मोर मनावन हे

तोर बर मैं , सोंहारी ल लाने हवंव
चना भाजी , अमारी ल लाने हवंव
हाँसी आ गे त बाकी दिखावन हे

-सा. के. आर. मार्कण्डेय


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