श्री ताराचन्द साहू संगे चरण मनाबो गुरू घासीदास के

श्री ताराचन्द साहू
तुम घूम फिर आहू
संगे चरण मनाबो
गुरू घासी दास के

माटी के काया , माटी के चोला हे
एक दिन बिराना , होना सबोला हे
नइ समझेंन , तुम समझाहू
संगे .......

गर्भवास म भक्ति कबूलेन
नइ जानेन हम , जगति म भूलेन
वोहि भक्ति के जोत जगाहू
संगे ..........

बालक पन हम खेल गंवायेन
कूद- कूद खेलेन , नइ पढ़ पायेंन
करण सुआ कस  पढ़ाहू
संगे ........

आये जवानी , रंग म मातेन
अतका मातेन , करजा ल लादेन
करजा ल मुक्ति करवाहू
संगे ........

आइस बुढ़ापा , बांह होगे ठुठवा
पीरा सचरगे , कांपत हे घुठवा
तन के व्याधि हरवाहू
संगे

आशा के तुम अमरित घोरेव
तन ल तियागेव , धन ल छोड़ेव
ये भुइंया ल तुम्ही जगाहू
संगे .........
- सा. के. आर .मार्कण्डेय
स्वर्गवास - 11.11. 2012  रचना दिनाँक 14.11. 2012

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