लक्ष्मण तोर संग चले म घाटा होगे

लक्ष्मण तोर संग चले म घाटा होगे
बड़े- बड़े मोर तरिया- नदिया बांटा होगे

कतेक बड़े मोर डोली धनहा
जेकर तुमन रेहेव किसनहा
जे दिन तैं बने नंगरिहा लाटा होगे

देख आज तोर खरतरिहा मन बर
गाँव नंदागे गंवतरिहा मन बर
मनखे- मनखे बर चांटा होगे

अंग- अंग म मोर फोरा होगे
जुच्छा धान कटोरा होगे
पग- पग बिखहर कांटा होगे

कहाँ हवे तोर सरग निशैनी
फूले-फरे म लागिस मैनी
चूहरी, कन्हार-मटासी, लक्ष्मी ठाठा होगे

दया- मया तोर गाँव म नइये
जुड़- शीत तोर छांव म नइये
सबे काम म भरती भाजी-भांटा होगे

दारू के नित गंगा बोहिगे
पापी ल जादा धरमी तरगे
आधा रात म चंदा सूमो टाटा होगे

कहाँ- कहाँ के मोटरा आ गे
पुरुत- पुरुत के पांव बंधागे
घर भीतरी म हमर सबके सैर सपाटा होगे

झन गाबे तैं गीत कहुं मेर सुनता के
डांडिया रास रचावन दे बात करन दे बिनता के
परे- डरे तोर मनखे जम्मो नाठा होगे
- सा. के. आर. मार्कण्डेय
रचना दिनांक ०७.१०. २००६

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