काेन हवे सगा गरीबी के

काला कहंव काला नइ कहंव
काहीं केहे म ग थोरको भलाई नइ दिखे
कोन हवे सगा गरीबी के
हमरो नजर म नइ दिखे

काया दंदर गे कमाई म
हम नइ जानन ग ये
कोन जनम के भुगतना ये
पीरा सचर गे दवाई म
जीव कापत हे ग
फेर कइसे जगत बीच
रहना हे

भुइंया ह माेर बिझौना हे
आकाश बने हवे छानी ग
जेला कइसे कहंव
सुन लेहू भइया ज्ञानी हो
आनी- बानी के
हवे कहानी ग
जेला कइसे कहंव

- सा. के. आर. मार्कण्डेय

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