छुट्टी नइ मिले डिपाट म

छुट्टी नइ मिले डिपाट म
घर कइसे के आवंव
सरी बुता हवे मोर हाथ म
तोला काला बतावों रे यार

बड़े- बड़े बर , बारो महीना
छुट्टी हमर बर  नइये
राखे हवे मजदूरी म हमला
कांही केहे म वो भला नइये
हम जीयत हवन बाई ख्वाब म
तोला काला बतावों रे यार

राजा के होथे चढ़ौतु घोड़ा
वइसने हमर दशा हे
दसो दुवारी म सेवा लिखे हे
प्यारी- प्यारी कथा हे
अधिया गेन बाई रुवाब म
तोला काला बतावों रे यार

सरी- सरी रतिहा , सरी मंझनिया
होवत रइथे बलऊवा
बड़े बिहिनिया हाँका परत हे
जाना हे वो बाई बंगला
भाजी- पाला लिखे हे किताब म
तोला काला बतावों रे यार

- सा. के. आर. मार्कण्डेय

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