हमर जिनगी के करुण कहानी

हमर जिनगी के करुण कहानी हे ग
जइसे मतलाहा खुदु खादा पानी हे ग
तभू छाती म दस ठन परानी हे ग

नइये उमंगी , नइये जवानी
खेति खार बंजर , उजरे हे छानी
इहि अब हमर निशानी हे ग

संसो हमर भइगे सदा संगवारी
करजा अऊ लागा के लगथे तुतारी
तभु घर म झलकथे फुटानी हे ग

कोनो ह हमर होही , हम नइ जानन
दुनिया के रंग- ढंग , कइसे बखानन
सब रातो- रात होगे , इहां ज्ञानी हे ग

नत्ता- रिश्ता हमर , बनगे पराया
भागत हे धरती , अजब हवे माया
झूठ- मूठ घलो अब मितानी हे ग

- सा. के. आर. मार्कण्डेय ( रचना 28 /02/ 2003 )



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