श्रीदेवी के सम्मान म

महानदी तैं कहाँ चले हस
हस्ती ल मोर उजार के
संग म ले जा आवत हौं बहिनी
डोला अपन सिंगार के

बड़ सुख देइस बाग बगैचा
ये आमा के डारा ह
रात पहागे कहत हवे
चलो- चलो ये पारा ह
घोड़ा- हाथी सजय बराती
गली म हांका पार के

टूटत हे गस्ती , छूटत हे बस्ती
राम रमउवा होवत हे
बड़ भुरभुरही माटी के ममता
कोरी चकोरी रोवत हे
मोर सुध सजन संग लागे हे
का करिहौं आँसू ढार के
 अलविदा
- सा. के. आर. मार्कण्डेय ,छत्तीसगढ़

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