गुरू घासी के बचन सिर धार ले

गुरू घासी के बचन
 सिर धार ले
धरती ल अपन
सिंगार ले

तोर मेर मोती हे
तोर मेर सोना हे
गौंसर खेती हे
खेती ल बोना हे
नागर धर उपजार ले

छोटे- बड़े सब मिल
ताकत लगाना हे
छाये हे गरीबी वोला
दुरिहा भगाना हे
तोर संग सबो ल तियार ले

रसता सुघर तोर
चांदी जइसे होना ग
सुविधा सफर सब
बांदी जइसे होना ग
सब ल बने चतवार ले

चलत हे दलाली तुम
धरती ल बेचो झन
कहाँ जाहू काली तुम
काली ल मेटो झन
कोरी दू कोरी बिचार ले
_ सा. के. आर. मार्कण्डेय

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