कोन हे कसूरवार सवाल उठही

दसो दिशा ल आवाज उठही
गुरू घासी बबा के समाज उठही
जागो सोवइय्या मन आलस तियाग के
कतका हमर अउ भाग रूठही

पांव तरी दुनिया दबाये हवे हमला
सुख ल नंगाके बनाये हवे कंगला
कोन हे कसूरवार सवाल उठही

बेरा कलथ गे हे अब के सुराज में
पुरवाही बदल गे हे जनता के राज में
बेड़ी पुराना सब आज टुटही

चंदा- सुरूज , धरती- भुइंया ल मांगबो
अंधियारी घर म अंजोरी ल लानबो
चारो चंहुदिश म हमरो आवाज गूंजही

नीति नियाव होही , सिगरे समाज बर
कोनो नइ भटके , महिनत अउ काज बर
संसो- फिकर के रिवाज छूटही

- सा. के. आर. मार्कण्डेय

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