दुनिया म हमर संगी नइये ग

मिनी माता गये हे संवार के
भाई सबके जिनगी सुधार के
दुनिया म हमर संगी नइये ग
वो ह रोये हे डंड फुकार के

एक अकेला हमआयेन जग में
अऊ खुद ल अकेला हम पायेन जग में
सरी दुनिया के मेल मिलाप में
हम रहि गेन हस्ती ल हार के

हमर दुःख - दुविधा ल देखे अउ जाने हे
अचरा म अपन सुख- सुविधा ल लाने हे
येला लानेव बेटा बड़ मुश्किल में
रखिहौ तुम धन ल संभार के

छल - बल वाले सब छल- बल करही
पुरखा कमाये रही हक तोर मरही
करम गति लिखही गुलामी ल
भाई पीढ़हा ल तुंहला उतार के

- सा. के. आर. मार्कण्डेय

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