तोर बिना

तोर बिना चंदा- चंदैनी लागे अनबोलना
निचट उदास लागे घर- अंगना
बीच डगर म तैं संग मोर छोड़े हस
बइरी बना के तैं मुखड़ा ल मोड़े हस

परी बरोबर तैं छाये रेहे
उंगली म मोला नचाये रेहे

तोला देखे ते देखते  देखत रहि जाय
बिना पानी के  मछरी तड़फत रहि जाय

तोर लाखों दीवाना ल का कइहौं
तोर पता ठिकाना ल का कइहौं

तोर जाये से मोर तो सबे चल दिस
आँखी होगेअंधरा , यहु छल दिस

- सा. के. आर. मार्कण्डेय

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