घट- घट म बिराजो नकुल ढीढी

घट- घट म बिराजो नकुल ढीढी
तभे ये समाज तोर आगू बढ़ही
जानही समाज कोनो तुंहरे तियाग ल
उही मेर सबके ग पांव अड़ही

तुंहरे सरिख सब मनखे ल जानही
दुःख अउ दरद ल सबके ग मानही
सब के सुख अउ सुविधा के कारण
ज्ञान के किरपान पग- पग धरही

तुम तो बनाये रेहो ज्ञान के गरिमा
सब ल रेंगाये रेहो शान से जग मा
उही महिमा ल सब देखे चाहत हे
संग म तोरे सब भव तरही

भागत हे दुनिया बड़ा करलाई हे
नइये सहारा कोनो , नइये ददा- दाई हे
कइसे हम करबोन जगम सियानी ल
कोन हमर अउ हियाव करही
- सा. के. आर. मार्कण्डेय



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