कंदरत रइथे मोर चोला

कहुं गोली चलत हे , कहुं गोला ग
कंदरत रइथे मोर चोला ग
रोज उजरत हे बस्ती टोला ग
कंदरत रइथे मोर चोला ग

ये सोनहा- सोनहा माटी हमर ए
काकर आँखी फूटत हे
ओनहा- कोनहा सपटे हे बइरी
गुड़ कस मांखी लूटत हे
धरती के बेचावत हे डोला ग
कंदरत रइथे मोर चोला ग

बड़े- बडे़ व्यापारी हे ,
अउ बडे़ - बडे़ जुआरी हे
नान- नान इहां मनखे हे
उंकर बर अंधियारी हे
जिंकर बानी अबोला ग
कंदरत रइथे मोर चोला ग

हम दुनिया ल का
मांगत हन
तुम तो बइरी जागे हव
हम तो अभी जागत हन
 नइ जागे ए हमर भोला ग
कंदरत रइथे मोर चोला ग

- सा. के. आर. मार्कण्डेय

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