मन्दिरवा ल के ठन वनाहू

मन्दिरवा ल के ठन बनाहू
तुम कहाँ- कहाँ धजा फहराहू

एक मन्दिर तन निरमल पाये तैं
वहु घट साहेब दीया नइ जलाये तैं
नरियर- सुपारी इहां काबर नइ चढ़ाये
कतेक दिन पर ल खवाहू

एक मन्दिर घर सुन्दर पाये तैं
वहु नोहे तोर साहेब कइसे बउराये तैं
बड़े- बड़े देवता पोसे घर गुंगवाये
तेल फुल कतेक सिराहू

कोलकी, संगसी छेक डारे , तभू नइ हारे
भांठा- टीकरा छोल- छोल , धौरा करि डारे
एक दिन भजे तैं बने जी परान दे
वो ही दिन फेर जुरियाहू

एक मंदिर म कइसे मन नइ माढ़हे ग
तभे तोर मन्दिरवा ह दिनो- दिन बाढ़हे ग
देखा सिखी बाय लगी जग के कहानी
ओरी- ओर मड़वा गड़ाहू
- सा. के. आर. मार्कण्डेय

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