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डॉक्टर लखनलाल मारकण्डेय नहीं रहे

गणपति.विसर्जन वंदना

सतनाम बाबा गणपति महराज तोर वंदना हे आज तो र वंदना हे आज चौदह भुवन ले तुम चले आये हव घर, गली , अंगना म मढ़वा छवाये हव जिहां जुरगे समाज तोर वंदना हे आज माता-पिता के तुम महिमा जानेव तीनो लोक ले बढ़के मानेव हमु मानत हन गणराज तोर वंदना हे आज

जीत - हार का मौसम

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जीत - हार का मौसम आ रहा प्यार का मौसम जनता और सरकार का मौसम पल - पल , घर-घर तकरार का मौसम वादोंं के सुहाने सरगम होंंगे

जय सतनाम

जय सतनाम

कतेक सुख चाही ग

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माटी के काया कतेक सुख चाही ग लाखों बटोर ले संग नइ जाही ग चारो मुड़ा आलिशान महल बनाये ग छुटगे मया मन ऊहां तैं धंधाये ग पानी पवन तोला भले मिल जाही ग अपन कुटुम बर बड़े - बड़े जोरा होगे गुरू के बचन इहां सबे मेर कोरा होगे कहे- सुने बर भले मिल जाही ग जिनगी अपन तैं अपने बर जीयत हस लागे न पियास तभू घेरी- बेरी पीयत हस तृष्णा के प्यास भला कब बुझ पाही ग - सा. के. आर. मार्कण्डेय

जग से लड़े के मन होथे

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जग से लड़े के मन होथे हमर गुरू जग से लड़े के मन होथे कोनो झूठ , कपट ,छल बोथे हमर गुरू जग से लड़े के मन होथे