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Showing posts from January, 2018

हाँसी नंदागे काबर मोर गाँव म

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पीपर , आमा ,  कदम रुख छाँव म बइरी हाँसी नंदागे काबर मोर गाँव म शहर म समा गे सबे खेतिखार कमइय्या के जांगर होगे बीमार नाचा- बाजा ल होगे तीजरा बुखार नाव भर के रहिगे सरी तिहार बेड़ि लगे हे जस पांव म चरचिर ले लइका मन खेलत हे दुवारी में दाई भुलाये हे दुनिया के चारी में संगी- जहुँरिया मन माते हे मस्ती में रद्दा लजाये हे बिकलांग गारी में वो पासा हलावत बइठे हे दाँव म कतको झन के हाड़ी रीता परे हे केउ- केउ दिन में ग चुल्हा बरे हे रहन म बुड़गे सबो टठिया- बरतन ठुठवा बरोबर तन ल करे हे पथराये आँखी हे अंतस के घाव म रचना दिनांक 04 .09.1999 सा. के. आर. मार्कण्डेय

छत्तीसगढ़ के भुइंया बघवा के माढ़ा

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तेंदुसार के लउठी , अखरा म खाड़ा हे ये छत्तीसगढ़ के भुइंया , बघवा के माढ़ा हे तपसी , दानी , उद्भट ज्ञानी मन के भुइंया ये वीरनारायण सिंह के बलिदानी भुइंया ये पसिया पीने वाला तन में वजनी हाड़ा हे इहां के माटी धरम धाम कस अतिशय पावन हे देव बरोबर दाई- ददा के धुर्रा चंदन हे सबे धरम के , सबे जात के इहां जमाड़ा हे जेकर बल जादा होथे वो सदाचार म रहिथे ऊंच- नीच , मंगल- सोहर बोली- बात ल सहिथे छत्तीसगढ़िया तन के बस इहि पहाड़ा हे तन में इहां लंगोटी पहिरे मन म नाम धरे हे छाता पहाड़ी के साधु साँचा सतनाम करे हे धजा- पताका सेत रंग के ठंव- ठंव गाढ़ा हे गोड़वानी, पंडवानी , करमा सुवा ददरिया हे लोरिक बरिघना , आल्हा के सब राग गवइय्या हे फगुनाही रंग झाझर में नित गमके नगाड़ा हे गुरतुर बोली , सिधवा बानी फेर तन म लहु हवे गा जे दिन माटी मांग लिही वो दिन धार बही गा सबर के बांधा उथली नइये अड़बड़ दाहरा हे रचना दिनांक 22.01.2000 सा. के. आर. मार्कण्डेय

छत्तीसगढ़ के माटी अब जागे हे

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छत्तीसगढ़ के माटी अब जागे हे जागो ग किसान जुग जागे हे जागे के बेरा अब आ गे हे जागो ग किसान , जुग जागे हे ददा- परिया के तोर भुइंया ग पानी के मोल झन बेचौ नइ मिले कोनो मेर छइंहा ग माटी के मोल मन सोचौ कतको लेवइय्या नित मांगे हे तुम हो पोसइय्या सरी दुनिया के तुंहरे अनाज सब खावत हे आज हवे कोठी काबर तुंहर सुन्ना चतुरामन मेछरावत हे तोर हाँसी- खुशी ह लुकागे हे दिनो- दिन बाढ़त हे मंहगाई ह सबे जिनिस होगे महंगा बाबू बर नइये बने कुरता नोनी बर नइये तोर लहंगा छानी के खदर उड़ागे हे माटी म हवे तुंहर हीरा के ढेरी खन कोड़के आज निकालो घुर घुरहा जिनगी के पीरा पराही महिनत संग चेत जगालो संगवारी मन घलो आ गे हे जगा- जगा जुरमिल विचारत हे नवा समाज के गढ़ैया मन सबो बर बने दिन लानत हे गरीब के आरो लेवइय्या मन गरीबी आज हरुवा गे हे रचना दिनांक 11.06.1999 सा. के. आर. मार्कण्डेय  

संत प्रवर रैदास

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हे संत प्रवर रैदास दीन- दुःखी अउ टूटे मनके एक प्रबल विश्वास काशी म तोर जनमन होइस रघु राजा के वंशज जाति- धरम म तोला जानिन चार बरन ल अंतज सबके गरब करे हो नाश तोर भगति म साहेब रीझे मन ल बनायेव चंगा तोर कठौती ले परगट होइस बेटी बनके गंगा तोर महिमा हे कैलाश कठिन परीक्षा ले ये हे तोर मनखे मन दुरजन ह पानी में साहेब तंउरे हे देखे हे जन- जन ह जग म करेव परकाश पारस ल तुम पथरा जानेव खोंच देयेव छप्पर म ज्ञान के दौलत जग ल बाटेव सब आइन तोर शरण म बन गेव सबके आस रानी झाला , मीरा  बाई तोर शरण म आये हे चित्तौड़ नगर के शोभा बढ़गे तोला गुरू बनाये हे तोर छतरी बने हवे इतिहास - सा. के. आर. मार्कण्डेय

ग्रेट रिपब्लिकन नकुल देव ढीढी

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गणतंत्र दिवस  26 जनवरी 2018 के पावन अवसर पर ग्राम भटगाँव तहसील व जिला दु्र्ग छ.ग. में प्रदेश के महान रिपब्लिकन , गुरू  घासी दास जयंती के जन्मदाता . स्व. नकुल देव ढीढी जी की भव्य प्रतिमा स्थापित की गई . प्रतिमा का अनावरण श्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी प्रथम मुख्य मंत्री छत्तीसगढ़ ने किया.

तोला कोन बन खोजंव चिरैंया

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तोला कोन बन खोजंव चिरैंया तैं उड़ गये देश- बिदेश तोर शोर मिले न संदेश तैं उड़ गये देश- बिदेश रतिहा पहाथे , सुरूज चले आथे लाली- गुलाली रंग साथ म आरो लेवत मैं बन- बन भटकथंव राजा सगर के बाग म मोला सुरता म डारे लेश घाट- घठौंदा , ये तरिया , ये नदिया पुतकी परे हे मोर पांव म घर - घर कहानी , हो गेंव दीवानी चरचा हवे सरी गाँव म लगथे करेजवा म ठेस प्रेम दीवानी , मैं अनजानी तोर मया म बंधागेंव प्रेम हवे रे , नेम हवे रे का छांदे तैं , बइरी छंदागेव मोला काबर दिये तैं कलेष -  सा. के. आर. मार्कण्डेय

होबे निरमोही तैं झन आबे रे

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ये शहर वाले हवा, ठहर रहिबे मोला जाना हवे गाँव बर- पीपर जुड़ छांव जिहां लिखे हवे नाम खबर कहिबे संझा के बेरा जोहत रइहूं तैं आबे नइ आबे देखत रइहूं नइ आबे ते गड़ौना फोन करिबे आही तोर सुरता रोवत रइहूं अाँसू म काजर धोवत रइहूं मोर सोर संदेशा पूछत रहिबे होबे निरमोही तैं झन आबे रे गाँव पुरवाही तैं कहाँ पाबे रे शहर म सर- सर छिकत रहिबे -

सुरूजमुखी तैं झुलना म झुले हस

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सुरूजमुखी रे पींयर- पीयर फुले हस कभू अाँखी म झूले , कभू झुलना म झूले हस सुरुज के चेहरा म , चेहरा देखत हस झन जाबे बइहा तैं , कहिके छेकत हस कारी- कारी रतिहा ल, कब तैं कबूले हस बड़ फजरे ल आथे बाई , तोर दीवाना नैना लजाथे तोर , गाथे मीठ गाना नयना लड़ाके गोई , दुनिया ल भूले हस हरदी रंगाये तैंहा , तन पींयराये हस सोला सिंगार कर , जग ल रिझाये हस टूरी गवनाही सहीं , मड़वा म खुले हस - सा. के. आर. मार्कण्डेय

तिरंगे की देन- भारतीय गणतंत्र , जय हो

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कोनो उड़त हे अगास म कोनो धरती सजावत हे ये भारत के जनता ए आज अघुवावत हे बाबा साहेब ह लिखे हे वोला दुनिया म पावत हे कोनो जिला म बइठे हे कोनो बइठे कछेरी म कोनो चंदा- सुरूज ल धरे हवे हथेरी म बेटी माथ उचावत हे बेटा मान बढ़ावत हे जिंकर कभू मान नइ रिहिस वोमन मानी होगे जिंकर हाथ म दान नइ रिहिस वोमन दानी होगे रोज दान लुटावत हे रोज मान ल पावत हे जिंकर रिहिस छितकी कुरिया ऊंकरो बंगला बनगे परजा ल राज मिले हे जबले छाती सबो के तनगे सब मया बढ़ावत हे अउ मया ल पावत हे _ सा. के. आऱ - सा. के. आर. मार्कण्डेय

हे भारत भारती

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हे भारत भारती ,  हे भारत भारती जल , थल , नभ में होवथ हे तोर आरती

झन आबे तैं चिरैंया

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मोर गली म पाटी पार के झन आबे तैं चिरैंया मोला मया के मोहनी डार के उड़ जाबे तैं चिरैंया

झुम के बहार आगे ,अमरइय्या म चले आबे

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झुम के बहार आगे अमरइय्या म चले आबे दिल म करार आही अमरइय्या म चले आबे झुम के बहार आगे अमरइय्या म चले आहूँ दिल म करार आही अमरइय्या म चले आहूँ आमा के डारा म कोइली बोलत हे भरे हे दरद बोली छाती छोलत हे गम के बहार लागे अमरइय्या म चले आबे मउरे हे आमा तहुं  मउर सजाले रे दिन घलो आये हे अपन बनाले रे मन म विचार आगे अमरइय्या म चले आबे आना रे आना गोरी दुनिया बसाबो पिंयर होगे धरती हमुं पिंवराबो महर- महर महमागे अमरइय्या म चले आबे - के. आर. मार्कण्डेय

तोर चरणों के धूलि महान हे नकुल देव ढीढी

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नकुल देव ढीढी तोर चरणो के धूलि महान हे तोर छाती म अगनि बान हे अउ वाणी म गुरू के ज्ञान हे तुम मनखे म वो मनखे अव जगत वन्दनीय ल खोजे हव काकर वन्दना जग म होवय एक तम्हीं तो सोचे हव तोर सोच के ये गुणगान हे सरी दुनिया ल एक करइय्या के पतवार बनेव उहि नइय्या के गुरू अउ भीम गरजना संग तुम पीर हरेव हव भुंइया के सब देवता मन अन्जान हे तोर नाम बिना हम आधा हन का होइस थोकिन जादा हन सरवर जल निरमल नइये मतलाहा खुदु - खादा हन तोर मेर हमर परान हे. - सा. के. आर . मार्कण्डेय

इहां ऊंचा- ऊंचा रिहिस दीवार , तुम तोड़ी डारे हो नकुल ढीढी

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बजुर किंवड़िया ल कोनो नइ खोलिन इहां ऊंचा- ऊंचा रिहिस दीवाऱ तुम तोड़ि डारे हो नकुल ढीढी कोन गुरू ह तोला रसदा बताइस काकर चरण मनाय कोन साहेब के बाना ल बांधे दुनिया म नाम कमाय तोर बिना  नइ होय तिहार तुम जोड़ि डारे हो नकुल ढीढी गाँव के गुरू ह तोला रसदा  बताइन गुरू घासी के चरण मनाय बाबा साहेब के बाना ल बांधे तैं दुनिया म नाम कमाय तोर बिना  नइ होय तिहार तुम जोड़ि डारे हो नकुल ढीढी काकर दुःख तोला बागी बनाइस काकर  दुःख ह रोवाय काकर पीरा ल ताकत बनाके जग म रेंग्व अघुवाय तोर रेंगना म करथन विचार तुम छोड़ि डारे हो नकुल ढीढी हमर दुःख तोला बागी बनाइस हमरे दुःख ह रोवाय हमरे पीरा ल ताकत बनाके तुम जग म रेंगेव अघुवाय तोर रेंगना म करथन विचार तुम छोड़ि डारे हो नकुल ढीढी      - सा. के. आर. मार्कण्डेय

बिन मांगे मीनार बनवा दिये हो नकुल ढीढी

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                        गुरू घासीदास जयंती के प्रथम आयोजन १८ दिसम्बर १९३८ ग्राम भोरिंग  थाना तुमगाँव तहसील व जिला महासमुन्द छत्तीसगढ़ हुआ . जयंती के जन्मदाता के रूप में समाज के महामानव मंत्री जी नकुलदेव की कीर्ति अक्षुण्ण है .           सतनामआन्दोलन के अन्तर्गत गुरू घासीदास जयंती के द्वारा समूचे छत्तीसगढ़ विकास रेखांकित हुआ और छत्तीसगढ़ राज्य का सपना साकार हुआ .   कृतज्ञ राज्य ने गिरौदपुरी गुरू घासीदास जी की जन्मस्थली में अनेक विकास कार्य कराते हुए कुतुब मीनार से ऊंचा जय स्तम्भ का निर्माण कराया . समाज मांगा नहीं था .  ये मंत्री जी नकुल देव ढीढी द्वारा जगाये सामाजिक , धार्मिक, राजनीतिक ,  शैक्षिक , सांस्कृतिक   स्वाभिमान एवम् स्वतंत्रतोत्तर संवैधानिक हक चेतना का सम्मान था . - सा. के. आर. मार्कण्डेय

मोला मैना बना देय मधुर बोलिया

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तोर नैना बोलत रइथे मोर छाती छोलत रइथे करे कसराहील दीवानी बनगेंव मनवा डोलत रइथे यार आमा ल टोरेंव टोरत रहिगेंव तैं आहूं केहे अगोरत रहिगेंव रिक्शा मंगायेंव मैं तीन गोड़िया मोला मैना बना देय मधुर बोलिया रायपुर शहर मैं घूम डरेंव मया होथे मतौना मैं झूम डरेंव कइसे- कइसे लागत रिहिस सिरतोन म तोला देखत रेहेंव घड़ी चौक म मोला पूछत रिहिस हे पुलूस वाला मैं केहेंव आवत हे मोर घरवाला - सा. के. आर. मार्कण्डेय

चल- चल रे संगी मोर

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चल- चल रे संगी मोर चल- चल रे संगी मोर कनक पिसान , दार अउ चांउर आही जांगर टोर खांध म गैंती- रापा धरले मुड़ म बांध ले पागा खेती ल रोजगार बनाबो तिरयाही सब लागा बड़े बिहिनियां उठ के जाबो आबो सुरूज बोर महिनत वाले अन हम पगली महिनत से का डरना महिनत ल जिनगी के गाड़ी सीखेन पार उतरना का होइस लाटा- फाँदा हे लाखों लाख करोर तैं महिनत कस राजी मोला महुं मजदुर के बेटी अंव तरिया- नदिया , बाग- बगैचा छत्तीसगढ़ के खेती अंव पड़की , सुवा- ददरिया मन ह बहिनी आवे मोर - सा. के. आर. मार्कण्डेय

तैं पियाये बबा दुनिया ल अमरित घोर के

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तैं पियाये बबा दुनिया ल अमरित घोर के टूटे- टाटे मनखे ल जोर के जाति के रूंधना , पोथी के बंधना माटी म मिलाये , तैं टोर के एक अमरित केहे , संत हमर अव साहेब केहेव , पंथ हमर अव मन के मंदिर ल अंजोर के एक अमरित केहे , बैर झन करिहौ कोनो महाराजा के , पैर झन परिहौ दाई- ददा , गुरू जन छोड़ के एक अमरित घोरे , सत्य वचन बर सत के सहारा केहे , सत्य भजन कर झूठ के भरम- भूत छोर के एक अमरित केहे , जग हे अनोखा ग दिही रे बइरी तुम्हला , पग- पग धोखा ग राखे रहि तोला बिल्होर के एक अमरित हवे , तोर कहानी ह रसदा देखावत हवे , तोर निशानी ह काड़ी- कचरा ल अल्होर के एक अमरित तोर , ज्ञान के धारा हे बिना ज्ञान गुरू कहाँ , मुक्ति हमारा हे ज्ञान किवड़िया ल खोल के एक अमरित दिये , खेति- किसानी ल नागर- बख्खर , जग के सियानी ल धुर्रा चंदन होगे खोर के - सा. के. आर. मार्कण्डेय

खोजे न मिलेगा रोशनी का दिया, अप्प दीप भव

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मांजते ही रहो सदा अक्ल की धार को भोथरा न हो यह रहे नित नया . खुश तो रहो पर यह ख्याल हो मुसीबत कभी न दिखाती दया लाखों तरह के झमेले मिलेंगे जिससे रिश्ते सदा बिखरते गया स्वार्थ  की रीत हावी रहा है यहाँ इन्सानियत इसी से सिमटते गया लाखों लड़ाने वाले मिल जायेंगे खोजे न मिलेगा रोशनी का दिया अक्ल का अक्श ही मशविरा है तेरा राह से रोड़ों को हटाते गया. - सा. के. आर. मार्कण्डेय

हे सतनाम

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हे सतनाम ! जिनगी के टोरव घोर अंधेरा ल हे सतनाम , विनती हे सुधारव थोर बेरा ल न इहां दीया , न कोनो बाती न कोनो संगी , न कोनो साथी नइये ग छानी , नइये ओरवाती दिन घलो राती , अउ रतिहा हे राती मन जेति आगे , रेंगत हवे पांव पटपर भांठा , नइ दिखे कोनो गाँव कोलिहा- कुकुर , करे खांव- खांव कटरत हे कंउवा , करे कांव- कांव मारो- मारो बाजा , बाजत हवे काटो- काटो , सब कहत हवे पानी असन लहु, बोहत हवे कलप- कलप धरती , रोवत हवे सुधारव थोर बेरा ल हे सतनाम विनती हे - सा. के. आर. मार्कण्डेय

अमृत वाणी

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" मनुष्य जन्म से ही  न तो मस्तक पर तिलक की छाप लिये  आता है, न गले में यज्ञोपवीत.  जो सत्यकर्म करता है, वह मनुष्य है और जो कुकर्म करता है, वह नीच है , चाहे उसकी जाति जो हो.   गौतम बुद्ध

20 Oct 1926 का ऐतिहासिक आदेश Govt. Of C.P. & Berar

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सतनामी महा सभा छत्तीसगढ़ संभाग द्वारा दिनांक २७ जनवरी १९२६ को सी.पी. & बरार के गर्वनर को एक ऐतिहासिक आवेदन पत्र सौंपा गया था.  गर्वनर श्री मांटेग्यु बटलर के मुख्य सचिव श्री आर. ए. विल्सन जांच पड़ताल के बाद २० अक्टूबर १९२६ को राजकीय आदेश  प्रसारित किया जो तत्काल प्रभावशील हुआ- आदेश अंग्रेजी में पढ़ें-                                                            No. C 105 GOVERNMENT OF THE CENTRAL PROVINCES GENERAL ADMINISTRATION DEPARTMENT FROM  R. A. WILSON Esq. I. C. S. Chief Secretary to Government Central Provinces Panchmarhi The 7 th   October 1926 TO,           Mr. RATIRAM ( Malgujar of Keotadabri)            President of the Satnami Maya Sabha            Of Chhattisgarh Division Through : The DEPUTY COMMISSIONER BILASPUR Subject : Petition from the Satnami Maya Sabha of Chhattisgarh Sir ,            I am directed to invite a reference to the petition, Dated the 27 the January 1926,  which presented to his Excellency the Governor at Bilaspur by your self an

Historical Petition Of Satnami Mahasabha 1926

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To,            His Excellency Sir Montagu Butler                     K. C. I. E. C. B. C. V. O. C. B. E.                       Governor of the Central Provinces and Berar may it please your Excellency.                         On behalf the Satnami Maha  Sabha of the Chhattisgarh Division , established for the elevation of the Satnami - a section of the Depressed classes in central provinces , we beg most respectfully to Satnami this memorandum to your Excellency for your Excellency' s favourable consideration .                         Your Excellency is no doubt well aware that is Hindu society there are castes and sub- castes , high and low , and about of one fifth of Hindu World in depressed and untouchable .  The Satnamis of Chhattisgarh Division come in the category of the depressed classes and although their member in comparatively large . They are the most backward community of these provinces .                         As your Excellency in visiting these Distric

सतनाम धरम के अलग शान

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सतनाम धरम के  एक अलग शान हे इहां देवता ल बढ़ के इन्सान हे गुरू घासीदास केहे हे इहां नर सबले  बढ़े हे , तोर बइंहा कमइय्या के लाखों अरमान हे गुरू के बताये असल बात हे इहां मनखे के बस एक जात हे दस ठन बतइय्या ह अनजान हे सेत- सुपेती हे, सरधा पूजा सावा हे जिनगीअ्उ सादा धजा आनी- बानी के न कोनो पुराण हे पंथी- चौका म हे , ज्ञान के सार ह सत संगत म हे सबके उबार ह गुरू के देये, वरदान हे - सा. के. आर. मार्कण्डेय

सतनाम धर्म की मूलभूत मान्यताऐं

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१. मनुष्य मात्र के लिये सम दृष्टि . २. समस्त प्राणी जगत के प्रति सहिष्णुता, दया आैर अहिंसा 3.  व्यक्ति के वैचारिक स्वतंत्रता का सम्मान. ४.  वर्ण- व्यवस्था और जाति- पाति का असमर्थन. ५.  राष्ट प्रेम ६.  त्याग, तपस्या ,शहादत्र, महानता का सम्मान ७.  माता-पिता, साधु- संत एवं गुरू का सम्मान

छत्तीसगढ़ महतारी

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 छत्तीसगढ़ महतारी नवावत हन माथ तोर अंगना ह चहुंदिश फूले- फरे गोली अउ बारूद ल करत हवन आदेश तोर अंगना म झन उत्पात करे . तोर नगर सब जग म शुमार होगे लोहा संग लोहाटी तन के परचार होगे दाई जग म लिलार बरे अपन कोरा म  दाई सबे ल दुलारत हवव जागो ! जागो ! जागो कहिके सबो ल पुकारत हवव गुरमटिया ल सफरी करे कोन कथे हमला हम अड़हा अउ लेड़गा हन धीरज धरम वाले लउठी अउ बेड़गा हन तोर  माथ के सिंगार बरे - सा. के. आर.  मार्कण्डेय

मोर छत्तीसगढ़ के हाल

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मोर छत्तीसगढ़ के हाल, गुनत रइथौ तैं का कइथस, वो का कइथे सुनत रइथौ शुभ अवसर में राज बने हे देवता  मन बर ताज बने हे स्वागत बर फुल चुनत  रइथौ माटी ऊपर माटी सजगे ठंव-ठंव स्कूल कालेज बसगे हलो , हाय !  बाय करत रइथौ खेती म रौनक हे भारी गमगम फूलत हे फुलवारी टोर- टोर टुकनी बेचत रइथौ  - सा. के. आर. मार्कण्डेय

मैं तरिया नहाये नइ जावंव

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मैं तरिया नहाये नइ जावंव असनाने के लइक नइये पानी मार बज- बज, काई अउ बिस्सर नाक नइ ठहरे मोरो भवानी उहि मेर पड़वा , उहि मेर बइला उहि मेर मनखे नहावत हे लइका के कथरी , बहुरिया के कपड़ा ददा परिया ले जम्मो धोवावत हे जेला देखत हे बड़े- बड़े ज्ञानी कुल्ला करे के पुरतन नइये बिल- बिल ल कीरा समाये हे कब होही दाई मोर तरिया सफाई कते मेर उजला छेकाये हे सबे तरिया के एके कहानी तरिया नहाये म फोरा परत हे खजरी होवत हे बदन म पींयर- पींयर जीव लेवा बीमारी सचरथ हे तन- तन म ये रोग बड़ा अभिमानी - सा. के. आर. मार्कण्डेय

बिजली बिल की चर्चा

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बड़ मया दिखे, बड़ दया  दिखे सरकार तुम्हरे दिल म दार- चांउर के दाम वसुल ले बबा बिजली के बिल म एक रूपया म चांउर बाटेव संग मा बटुरा के दार एक लट्टू के बिजली बारेन बिल आवत हे हजार बेरा भले रिहिस कंडिल म चांउर बेचागे, दार बेचागे बेचागे बखरी- डोली अकल म पथरा परे हवे कोढ़िया होगे जोड़ी तारा लगे हवे सइकिल म लाली टमाटर के होगे पठोनी आलु गियिस लमसेना लकड़ी के मन आगी लगगे पदवी पा लिस छेना गेस परे हवे मुश्किल म - सा. के. आर. मार्कण्डेय

बिजली बिल

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मैं राजा , तै रानी सब तोरे दिल से हे तोर ल जादा संसो मोला बिजली बिल के हे टी. वी. केहे त टी वी लानेव लानेव होम थियेटर पानी बर पनघट म झगरा घर म आ गे मोटर सब तोरे दिल से हे घाम घड़ी म कूलर मांगे जाड़ा दिन बर हीटर पंखा अयरन, फिरिज चलगे नल म लगगे गीजर सब तोरे दिल से हे लेपटाप, कमपूटर मांगे मांगे संग म प्रिन्टर सबो के मेहमानी म दउड़त हवे मीटर सब तोरे दिल से हे - सा. के. आर. मार्कण्डेय. ( बिजली तिहार मानो ) जय

टूरी अलबेली

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चना के दार गोंदली रांधत हे गुलैची टूरी अलबेली मारत हवे सीटी महर- महर ममहागे पारा मुहल्ला काय ते बघारे होवत हवे हल्ला झिलमिल ,धानी - सातो बइठे हे दुवारी म लक्ष्मी अउ कुमकुम खेलत हवे बारी म दार- भात चुरगे पुरगे कहानी करिया हे राजा अउ गोरिया हे रानी - के. आर. मार्कण्डेय

तोर मया के चढ़े हे बोखार

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आरो लेवत रहिबे मोर एक अकेला हंव कोनो नइये मोर तोर मया के चढ़े हे बोखार दवा- पानी तैंहा करत रहिबे मोर धड़क- धड़क मोर छाती करत हे टप- टप माथा ल पसीना चूहत हे घड़ी- घड़ी, मीठा- मीठा प्यास लगे हे नैना मिलन के आस लगे हे रहि- रहि करत हे गोहार तोर देखे- भाले ले जिनगी संवरथे जर- जुड़ी वाले जम्मों पीरा ह हरथे मन ल निराशा के जाला ह झरथे मया के मन बगिया झुमरथे फुले- फुले लगथे बहार जुग- जुग मया करत रहिबे - के. आर. मार्कण्डेय

छत्तीसगढ़िया तोर मया

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छत्तीसगढ़िया तोर मया मोर जी के अधार होगे तैं जीत डारे मोला मोर हार होगे ददरिया उत्ती के पानी रे बुड़ती के घाम मोर चढ़ती जवानी लिखा ले तोर नाम लिखा ले रे बइहा करार होगे रद्दा ल रेंगे झुलाये डेरी हाथ अकेला झन जाबे रेंगा  ले मोला साथ मोर रेंगना घलो अब तुम्हार होगे नदिया के पानी बोहय बारो मास तोर पिरया म हे मोर जिनगी के सांस मोर जिनगी ह रे तोर उधार होगे - के. आर. मार्कण्डेय

अरे दगाबाज

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अरे दगाबाज मोला गुन- गुन रोवाई डारे सुरता म तोर, मोर झड़ी कस आँसू ढरे पवन झकोरा कस जिनगी म आये आँखी म सपना के झुलना झुलायेे निंदरी उड़ाके तैं बने अनबोलना जग अंधियार करे.. - के. आर. मार्कण्डेय

बइला ल ढील दे

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बइला ल ढील दे बाजार जाही बाजार जाही ग माेर राजा बाबू तोर बर लुंगी उधार लाही - के. आर. मार्कण्डेय

तुम और हम

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तिहार बर तुम, बिहार बर तुम सुधार बर तुम, प्रचार बर तुम पाये बर तुम, गाये बर तुम हाँसे बर तुम, फाँसे बर तुम तने बर तुम, बने बर तुम गने बर तुम, हने बर तुम खाना म तुम, थाना म तुम आना म तुम, जाना म तुम घर म तुम, दुवार म तुम गलि म तुम, सरकार म तुम लबार मे हम , किनार मे हम खखार मे हम, उधार मे हम सुने बर हम, गुने बर हम रोये बर हम, खोये बर हम नचाय बर तुम, नाचे बर हम मताय बर तुम, माते बर हम न दिरखा में, न आँट में न घर में, न घाट में न रस्ता में, न बाट में न तन में, न ठाठ मे़ तुम मजा पावो, साझा सरकार में हम मजा पावत हन तुंहर दुत्कार में - के. आर. मार्कण्डेय

कविता बनती है आग कभी

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कविता में शब्द घनेरी है ये तो शब्दों की चेरी है पगली सी देती फेरी है ये तेरी है, न मेरी है कविता एक कला है बिन साधे एक बला है पत्थर भी जिससे गला है इससे इन्सान ढला है कविता को जानो सरिता जिसमें है निर्मलता मन को देती शीतलता हर लेती सब चंचलता कविता बनती है आग कभी नर जाते हैं , जाग सभी गाते हैं मिलकर फाग सभी आलोकित होता राग सभी - के. आर. मार्कण्डेय

सबे जगह मनसरुवा

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 तरिया , नदिया , नरवा सबे  जगह मनसरुवा माटी, ढेला ,कोहा जुरमिल पारे दोहा मुच- मुच हाँसे आँखी बगुला के लागे पाँखी बड़े- बड़े के कहना देखभाल के रहना झन करबे तैं सियानी झन बदबे तैं मितानी फेर निशदिन पुण्य कमाबे जियत ल मेछराबे कोनो नइ खीचै तोर डेना चलही तोर उचेना सरा- ररा झन करबे नइते संउहत मरबे - के. आर. मार्कण्डेय

हमरो तो अरमान होही

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हाय- हाय, हलो ! हलो ! गोरी धीरे- धीरे चलो उड़त हवे तोर लाली दुपट्टा गियर ल बदलो हाय- हाय , हलो ! हलो ! बबुआ मोर पाछु चलो निकले हे गली तान के बेरा खोंधरा ल निकलो लड़का- चैनफांस के धरे झुलनिया            कनिहा म तोर झूले            जतर- कतर काला देखत हस             रस्ता शहर के भूले             बिच्छल हवे डगरिया             गोरी तुम संभलो लड़की- बेटी जवाहर के रे जग म             राज करे हे बरसो             चार कदम हम रेंगे नहिन             जग ल परगे संसो             हमरो तो अरमान होही रे             नवा दुनिया ल पूछ लो - के. आर. मार्कण्डेय

नया साल आया है

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आज नया साल आया है नव प्रभात आया है सृजन की बेला में एक बार फिर हांका पार के हमें प्यार से जगाया है चाय छोड़ने बात साथी कर रहे थे कार में ग्रीन टी उफनती आ रही है बाजार में शक्कर की राजधानी थर्राया है नव प्रभात आया है वही पीपल की छांव उजड़ती अमराई है थके- हारे लोग वही उनींदी तरूणाई है नदी के चौड़े  कछार पर धूप कुछ आई है ठिठुरती जाड़ों में जैसे कोई नहाया है नव प्रभात आया है स्वागत है आगत का फटाका फोड़ दो हाड़ी उपास है टूरा उदास है इन से क्या लेना छोड़ दो दबी- दबी आस है हाय- हलो एप में छाया है नव प्रभात आया है कल तक झेले हैं तो आगे भी झेलेंगे जीवन है खेल तो आगे भी खेलेंगे मिलेगी मुसीबत तो बढ़कर के ले लेंगे संघर्षों ने ही तो सबको बढ़ाया है नव प्रभात आया है - के. आर. मार्कण्डेय