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Showing posts from April, 2018

जग से लड़े के मन होथे

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जग से लड़े के मन होथे हमर गुरू जग से लड़े के मन होथे कोनो झूठ , कपट ,छल बोथे हमर गुरू जग से लड़े के मन होथे

जग से लड़न केहि विधि

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जग से लड़न केहि विधि हमर गुरू जग से लड़न केहि विधि कोनो नइये हमर कलानिधि हमर गुरू जग से लड़न केहि विधि

सतनाम बोल

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प्रथम गुरू घासी दास जयंती के अवसर गाया गया पंथी गीत सतनाम , सतनाम , सतनाम बोल कहे गुरू घासी दास सतनाम बोल गर्भवास म भक्ति कबूले इहंवा आकर उनको भूले काहे भूले कुछ तो बोल सतनाम यह सार जगत में जिनगी के आधार जगत में सत्य बचन सतनाम के मोल सत से धरनी , सत से अगासा  चांद- सुरूज दुई करे परकासा नव लख तारा करे किलोल सतनाम हे घट- घट वासी  कटे बन्द , छूटे चौरासी सतनाम हिरदे म तोल सतनाम साहेब दरसाये हंस उबारन लोक मआये लाखों तरगे सतनाम बोल सत्य बचन बस एक ही जानो सतनाम गहि एक ही मानो जागव साहेब अंखियाँ खोल कहे गुरू घासी दास सतनाम बोल

श्री नकुल देव ढीढी का जन्मोत्सव

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बीरेन्द्र ढीढी रायपुर ने बताया कि १२ अप्रेल २०१८ काे आरंग जिला रायपुर के ग्राम व्योहार में श्री नकुल देव ढीढी की आदम कद प्रतिमा का उद्घाटन माननीय श्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी प्रथम मुख्य मंत्री छत्तीसगढ़ के कर कमलों से स सायं ४. ०० बजे सम्पन्न होगा . श्री कैलाश महिलांग आत्मज स्व. मेहतरु राम महिलांग से चर्चा कर आने- जाने की व्यवस्था करना है . यही बात कल अधिवक्ता श्री तामस्कर टंडन जी ने भी बताई थी . फोन किया परन्तु उठाया नहीं .दुबारा फोन किया तो बताया कि वे केस के सिलसिले में जगदलपुर जा रहें हैं .                मंत्री जी श्री नकुल देव ढीढी जी की यह तीसरी प्रतिमा है . एक प्रतिमा ६ वर्ष पूर्व तुमगाँव में लगाई गई .इसे सुप्रयसिद्ध मूर्तिकार नेल्सन ने गढ़ा था . दूसरी  प्रतिमा रायपुर में बनी . जिसे दुर्ग जिले में ग्राम भटगाँव में स्थापित किया गया . २६ जनवरी २०१८ को प्रतिमा का उद ्घाटन हुआ .  तीनों कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मान्यवर अजीत जोगी ही रहें . समाज का उनके प्रति असीम लगाव है . जोगी जी इस बात को जानते हैं और मानते हैं . उन्होंने मंत्री जी श्री नकुल देव ढीढी जी की योगदानों की प्रशंसा कर

कंदरत रइथे मोर चोला

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कहुं गोली चलत हे , कहुं गोला ग कंदरत रइथे मोर चोला ग रोज उजरत हे बस्ती टोला ग कंदरत रइथे मोर चोला ग ये सोनहा- सोनहा माटी हमर ए काकर आँखी फूटत हे ओनहा- कोनहा सपटे हे बइरी गुड़ कस मांखी लूटत हे धरती के बेचावत हे डोला ग कंदरत रइथे मोर चोला ग बड़े- बडे़ व्यापारी हे , अउ बडे़ - बडे़ जुआरी हे नान- नान इहां मनखे हे उंकर बर अंधियारी हे जिंकर बानी अबोला ग कंदरत रइथे मोर चोला ग हम दुनिया ल का मांगत हन तुम तो बइरी जागे हव हम तो अभी जागत हन  नइ जागे ए हमर भोला ग कंदरत रइथे मोर चोला ग - सा. के. आर. मार्कण्डेय

नकुल ढीढी तोर बाना ल कोन बांधही

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नकुल ढीढी तोर बाना ल कोन बांधही मुरहा- पोटरा बर सीना ल कोन तानही सबके घर म बड़े- बड़े काम हे दुनिया देखाये बर ऊँचा- ऊँचा नाम हे हमर पीरा लुकाना ल कोन जानही सबके मति म इहां बड़े- बड़े ज्ञान हे जतर- कतर रेंगे अनते धियान हे तोर कहना के दाना ल कोन जानही कोन ल कहन , तुम करोग सियानी ल कोन ल धरावन हम तुंहर निशानी ल तोर बदले जमाना ल कोन जानही तुंहर सहारा सब जग अगुवागे चिमटी असन पा मनखे भुलागे तुंहर दागे निशाना ल कोन जानही - सा. के. आर. मार्कण्डेय

घट- घट म बिराजो नकुल ढीढी

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घट- घट म बिराजो नकुल ढीढी तभे ये समाज तोर आगू बढ़ही जानही समाज कोनो तुंहरे तियाग ल उही मेर सबके ग पांव अड़ही तुंहरे सरिख सब मनखे ल जानही दुःख अउ दरद ल सबके ग मानही सब के सुख अउ सुविधा के कारण ज्ञान के किरपान पग- पग धरही तुम तो बनाये रेहो ज्ञान के गरिमा सब ल रेंगाये रेहो शान से जग मा उही महिमा ल सब देखे चाहत हे संग म तोरे सब भव तरही भागत हे दुनिया बड़ा करलाई हे नइये सहारा कोनो , नइये ददा- दाई हे कइसे हम करबोन जगम सियानी ल कोन हमर अउ हियाव करही - सा. के. आर. मार्कण्डेय

मन्दिरवा ल के ठन वनाहू

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मन्दिरवा ल के ठन बनाहू तुम कहाँ- कहाँ धजा फहराहू एक मन्दिर तन निरमल पाये तैं वहु घट साहेब दीया नइ जलाये तैं नरियर- सुपारी इहां काबर नइ चढ़ाये कतेक दिन पर ल खवाहू एक मन्दिर घर सुन्दर पाये तैं वहु नोहे तोर साहेब कइसे बउराये तैं बड़े- बड़े देवता पोसे घर गुंगवाये तेल फुल कतेक सिराहू कोलकी, संगसी छेक डारे , तभू नइ हारे भांठा- टीकरा छोल- छोल , धौरा करि डारे एक दिन भजे तैं बने जी परान दे वो ही दिन फेर जुरियाहू एक मंदिर म कइसे मन नइ माढ़हे ग तभे तोर मन्दिरवा ह दिनो- दिन बाढ़हे ग देखा सिखी बाय लगी जग के कहानी ओरी- ओर मड़वा गड़ाहू - सा. के. आर. मार्कण्डेय

बूझो- बूझो गोरखनाथ अमरित बानी जी

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बूझो-बूझो गोरखनाथ अमरित बानी जी कइसे मनखे ल बने हे , कुकुर के जिनगानी जी धोवा के धोती पहिरे मोती , सेज सुपेती म सोथे सोन के थारी म , हब- हब खाथे ऐति भूखन म लाखो रोथे बड़ा करुण कहानी जी बड़े- बड़े मनखे सपना देखिन , मर के देवता होगे धनी हे धरती जागो कहिगे , गरीबी जनता भोगे मांगे मिले नहीं ग पानी जी कुकुर पोसइय्या बड़े कहाइन , मनखे ल दुर्राइन घुर-घुर के इहां जीने वाला , तभो ल नइ गुर्राइन नइये मुँह म बानी जी - सा. के. आर. मार्कण्डेय

गुरू संसार बदलना हे

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छलना हे गुरू छलना हे दुनिया म हमर बर छलना हे सोच- समझ के चलना हे गुरू ये संसार बदलना हे संगी हमर नोहे , साथी हमर नोहे दिया हमर नोहे , बाती हमर नोहे दिन हमर नोहे , राती हमर नोहे आती हमर नोहे , जाती हमर नोहे सोच- समझ के चलना हे सुकुवा हमर नोहे , चंदा हमर नोहे रोजी हमर नोहे , धंधा हमर नोहे बाजू हमर नोहे , कंधा हमर नोहे मोती हमर नोहे , बूंदा हमर नोहे सोच- समझ के चलना हे माटी हमर नोहे , ढेला हमर नोहे मेला हमर नोहे , खेला हमर नोहे पानी हमर नोहे , रेला हमर नोहे हटरी हमर नोहे , ठेला हमर नोहे सोच- समझ के चलना हे - सा. के. आर. मार्कण्डेय

आरती संत समाज साहेब तुंहर आरती हो

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आरती संत समाज साहेब तुंहर आरती हो सदा करिहौ एक अवाज साहेब तुंहर आरती हो तुंहर चरण म गंगा बोहत हे सरी दुनिया के जे मइल धोवत हे तुम राखेव सबके लाज साहेब तुंहर आरती हो तुंहर भरोसा हम बल गरजतहन पाके सहारा हमु मन हरषत हन सबे विपदा टरगे आज साहेब तुंहर आरती हो जग के जहर- महुरा पग - पग धोये हव सत के डगर वाला अमरित बोये हव तुम अधरे म रोकेव गाज साहेब तुंहर आरती हो - सा. के. आर. मार्कण्डेय