अगा भगति करत बितगे जुग नइ जानेन साहेब तोर महिमा ल नइते निशदिन- निशदिन चूक नइ जानेन साहेब तोर महिमा ल मोह नइ छूटिस बाबा, सोग नइ छूटिस ग लोभ नइ छूटिस बाबा, रोग नइ छूटिस ग बंधना नइ टूटिस बाबा, बेड़ी नइ टूटिस ग राग- रंग माते- माते, भोग नइ छूटिस ग नित सौ- सौ झेलेन दुःख नइ जानेन साहेब तोर महिमा ल दम्भ नइ छूटिस बाबा, क्रोध नइ उठिस ग रोध-अवरोध मारे, बोध नइ फूटिस ग डर नइ छूटिस बाबा, तरास नइ छूटिस ग कोन जनी कइसे होगे, फाँस नइ छूटिस ग मन कलप- कलप रहे चुप नइ जानेन साहेब तोर महिमा ल नींद नइ टूटिस बाबा, निशा नइ छूटिस ग मद म गाफिल परे, शीशा नइ टूटिस ग कांटा नइ हिटिस बाबा, खूटी नइ हिटिस ग जग वाले मन हमला, ससता म लूटिस ग हम देखत रहिगेन लूट नइ जानेन साहेब तोर महिमा ल - के. आर. मार्कण्डेय