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Showing posts from December, 2017

सत्रह तुम बहुत याद आओगे

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आज जा रहे हो कल बड़ी याद आओगे  जाआे खुशी- खुशी पुराने नोटो की तरह नया आ रहा है एडजस्ट करेंगे जो करना है अब वहीं करेंगे पर तुम्हारा साथ अच्छा रहा,याद आते रहोगे. - के. आर. मार्कण्डेय

जात - पात पूछै सब कोय

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जात-पात पूछै, सब कोय . हरि को भजे, न हरि का होय.. ये जग जिनके बाप का उनको लख प्रणाम . अपना था वो रहा नहीं, हारे को हरि नाम .. - के. आर. मार्कण्डेय

सद् गुरू कबीर दास

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जग के हरे हवे पीर भइय्या रे सदगुरू दास कबीर गढ़ि- गढ़ि खोट काढ़ै मन के शबद चलाके तीर हिन्दवा ल हिन्दवाई सिखाये तुरकन ल तुरकाई सतनामी ल सतनाम लखाये सेवक ल सेवकाई बइठे गंगा तीर मनखे ल तैं मनखे माने कभू दुसर नइ जाने शून्य गगन में पुरूष के वासा एक तिही पहिचाने हंस उबारे तीर दुनिया बोले कागद लेखी तोर शबद हे आँखन देखी सुन के सबके तन-मन भिंगगे क्षिण म उतरगे, मन के शेखी लगगे तोर अबीर काशी म तोर जनमन होइस तोर ज्ञान दुनिया ल धोइस मगहर म तैं ठाठ ल छोड़े सबे वचन तोर पूरा होइस लोग बहावे नीर - के. आर. मार्कण्डेय

कहाँ आथस जाथस, बता के जाना

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कहाँ आथस - जाथस , बता के जाना अरे मोर हीरा, चेता के जाना तोर संसो म बसे हे पराना तिही हमर सपना, तिही हमर अाँखी अस तिही हमर संगी, तिही हमर साथी अस तिही हमर गरब गुमाना बदले हे बेरा , बाबू , बइरी जमाना हे खाड़ा वाले खाड़ा धरे, गाज गिराना हे सरू- सरू बनथे निशाना कोरा म खेलाये हन दुनिया देखाबो ग जिहाँ- जिहाँ जाहूँ कहिबे, ऊंहे ले के जाबो ग तोर पल- पल रखबो धियाना _ के. आर. मार्कण्डेय

मेडम जी

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मेडम जी ! तुम लाख करो चतुराई हम हार नइ मानन तोर फुले- फरे अमराई हम रार नइ ठानन तोला जतका हे अधिकार नचा ले हमला जेला तैं बचावत हस बचा ले उनला अतके हे बस हम नाचे के पार नइ जानन फुटबाल कस खेलत हस तब बने खेल हमर का हे जिनगी लागे जइसे संउहत जेल बरतन ल हम मांजत हन तलवार नइ मांजन ! -

समाज ल जगाये हे, नकुल ढीढी

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ये समाज ल जगाये हे नकुल ढीढी गुरू ज्ञान. लखाये हे नकुल ढीढी बिना ज्ञान कतको रहे तञ पथरा जेमा पानी पोहाये हे नकुल ढीढी बाबा साहेब के ज्ञान ल जानिस घासीदास के धरम ल मानिस प्रथम जयंती मनाये हे नकुल ढीढी महासमुन्द जिला में भोरिंग एक ग्राम हे उंहे ऊंकर जनमन, हमर नेक धाम हे संत सेवा म बिते हे ऊंकर पीढ़ी ननपन ल जाने हे दुनिया के दुःख ल छुआछूत, भेदभाव, गरीबी अऊ भूख ल जेकर छाती म लगाये हे एक सीढ़ी - के. आर. मार्कण्डेय

सतनामी तुम जागव, दुनिया जाग गे हे

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सतनामी तुम जागव दुनिया जाग गे हे दगर- दगर अंगार बरत हे सब अँधयारी भाग गे हे तन के चिरहा- फरिया,चेंदरा फेके बर हे घुरवा में नवा छांट के बरतन ले ले पानी झन पी चुरवा में पानी के महिमा तुम जानो पानी जाग गे हे जांगर म जतका बल हे सुध अनुमान करव तुम आज समय़ के संग चले बर खुद ऐलान करव तुम माटी के महिमा तुम जानो माटी जाग गे हे हाथ के रेखा, करम के लेखा बदले बर हे तुंहला अपन- अपन मन भीतरी के मेटे बर हे धुंधला शनि गिरहा के पोथी पतरा दुरिहा भाग गे हे चार कदम तुम मिल के  रेंगव झकनाही दुनिया के लोग सुमत के तुम गोठ चलावव छंटयाही अँधयारी रोग सुनता के सुर सब जागे बिनता भाग गे हे आशा के तुम दिया बारो मन उजियार करो बेरा के पाँखी ल चीन्हौ झन ढेर ढार करो बेरा के महिमा तुम जानो बेरा जाग गे हे बड़ महिनत से फल मिलही बाना बांध झन डरना कोनो चाहे लाख लड़ावे आपस में नहीं लड़ना महिनत के फल होथे मीठा झगरा भाग गे हे बड़े- बड़े तुम पद म बइठो गरब कभू झन करना दुखिया के दुःख दूर करे बर सीना तान के लड़ना तुंहर लड़े ले अइसे लागे वीरता जाग गे हे का करना हे आगे दिन म निय

संत शिरोमणि गुरू घासीदास

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भारत के इतिहास गगन में देदिप्यमान एक नाम है छत्तीसगढ़ के गुरू घासीदास जी जिनको शत सतनाम है जन्म 18 दिस.1756  प्रथम जयंती 18 दिस. 1938 ग्राम भोरिंग , महासमुन्द छ.ग. स्वर्ण अक्षरों से लिखा है भारत के इतिहास में सतनाम काअलख जगाया सद् गुरू घासीदास ने अपना जीवन आपने जन हित में अर्पण किया मानव मन से भेद मिटाने निज तन का समर्पण किया सच्ची साधुता आपकी था सत् सम्यक ज्ञान आपको सत आदर्श गुरू देव जी रहे हैं जन- जन मान आपको जन्मभूमि गिरौदपुरी आप मंहगू के संतान सत्रह सौ छप्पन में जन्मे सद् गुरू आप महान करूणा उर्फ अमरौतिन मंहगू की सह धर्मिणी थी घासीदास सुत उद् भट ज्ञानी एक वही तो जन्मी थी छत्तीसगढ़ का यह धरा धाम था एक पिछड़े राज घासीदास जी चरण दिये उन्नत हुआ समाज स्वार्थ वश कुछ लोगों ने ढोंग बहुत रचाये थे निज को द्रष्टा कह करके कु संस्कार फैलाये थे वेद व्याख्या करने में वे चाव बहुत दिखलाये थे निज स्वार्थ के हेतु जन- जन में भेद कराये थे ऐसे अवसर में ज्ञान दीप बन प्रगटे घासीदास दृढ़- संकल्पी महा मानव करने भेद-भाव का नाश बाबा जी का जन्म हुआ उन्ह

हमर गाँव म जयंती हे आहू देवदास

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हमर गाँव म जयंती हे आहू देवदास तोला नेवता भेजत हन, लगे हवेआस गाँव के दुवारी म, तोरण लगाये हन खोर,गली-अंगना, मिल के सजाये हन बसती के बसती, लगत हे उचास जैत खाम , गुरू द्वारा, सेत म सजाये हन तीरे- तीर बिजली के झालर लगाये हन कुरसी- शमियाना घलो लगे हवे खास आहू तुंहर दरशन कर सुख पाबो गाहू- बजाहू, हम पालो चढ़ाबो तोर पंथी के उड़ही गाँव म सुबास गुरू घासीदास के जयंती म आहू आरूग फूल तुम आ के चढ़ाहू

तोर पूजा करन दिन- राति

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तोर पूजा करन दिन- राति गुरू हो तोर पूजा करन दिन- राति तन दिया करन मन बाति गुरू हो तोर पूजा करन दिन- राति प्रेम रूपी तेल अउ श्रद्धा सुमन हे तुंहर चरणों म इहि अरपन हे अउ नइये फूल पाति तोर पूजा के देखेन महिमा मया बरस गे खोर- गलिन मा गली- कुरिया के तनगे छाती तोर पूजा म सोना पायेन हीरा पायेन ज्ञान के मोती जखीरा पायेन तन- मन होगे ममहाती तोर पूजा ह सेत कमल हे करके देखेन, सत के बल हे सहज जोग फल दाति - के. आर. मार्कण्डेय

मिनी माता प्रथम महिला साँसद

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मिनी माता दिये हवे ज्ञान हमर बड़ा भाग हे तन- तन म फुके हवे प्राण हमर बडा भाग हे पुत्र के समान दाई सब ल सरेखे हे एक नजर दाई दुनिया ल देखे हे नीति- नियाव वोला जग म पियारा हे मजुर- किसान दाई सबके सहारा हे राखे हे सबके मान हमर बड़ा भाग हे नारी  मनके गरिमा बढ़ाये हे दिये सहारा दाई सब ल पढ़ाये हे देश के विधान म विधि बनवाये हे नारी मन बर निधि बनवाये हे जे बने हवे वरदान हमर बड़ा भाग हे खेति- किसानी बर बाँध बनाये हे भिलाई असन कारखाना खोलाये हे बस्तर मा आदिवासी जगाये हे दलित कहे तेला गर मा लगाये हे दाई बदले हे इंसान हमर बड़ा भाग हे माता के कहना गांठी म धर लेव जतेक दुःखी तेला साथी कर लेव जिनगी बर कोनो राह बनावव हँसो ,खेलव कोनो दुःख झन पावव दाई के हे अरमान हमर बड़ा भाग हे - के. आर. मार्कण्डेय

गुरू घासीदास जी के दुनिया ल पैगाम

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घट- घट म बसे सतनाम मनुष तन जान ले एेला धरती सबो के धाम मनुष तन मान ले एेला. काहे जग म भेद करे जी काहे रार मचाये कोनो ल तैं गिनहा जाने कोनो ल घेंच लगाय ये सांचा नोहे काम अपन पीरा ल सब जाने दूसर बर गाज गिराय चारेच दिन के जिनगानी हे फेर काबर इतराय दिन ढरत होथे ग शाम स्वारथ के दुनिया म संगी मानवता हे रोय कथनी तो कथनी रहि जाथे करनी एके होय बिना एकर सब हे बेकाम संत के बानी म शानी हे सबके हित समाय जियो रे भइ सुन्दर- सुघ्घर कोनो दुःख झन पाय गुरू घासी के हे पैगाम - के. आर. मार्कण्डेय

भगति करत बितगे जुग नइ जानेन साहेब तोर महिमा ल

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अगा भगति करत बितगे जुग नइ जानेन साहेब तोर महिमा ल नइते निशदिन- निशदिन चूक नइ जानेन साहेब तोर महिमा ल मोह नइ छूटिस बाबा, सोग नइ छूटिस ग लोभ नइ छूटिस बाबा, रोग नइ छूटिस ग बंधना नइ टूटिस बाबा, बेड़ी नइ टूटिस ग राग- रंग माते- माते, भोग नइ छूटिस ग नित सौ- सौ झेलेन दुःख नइ जानेन साहेब तोर महिमा ल दम्भ नइ छूटिस बाबा, क्रोध नइ उठिस ग रोध-अवरोध मारे, बोध नइ फूटिस ग डर नइ छूटिस बाबा, तरास नइ छूटिस ग कोन जनी कइसे होगे, फाँस नइ छूटिस ग मन कलप- कलप रहे चुप नइ जानेन साहेब तोर महिमा ल नींद नइ टूटिस बाबा, निशा नइ छूटिस ग मद म गाफिल परे, शीशा नइ टूटिस ग कांटा नइ हिटिस बाबा, खूटी नइ हिटिस ग जग वाले मन हमला, ससता म लूटिस ग हम देखत रहिगेन लूट नइ जानेन साहेब तोर महिमा ल - के. आर. मार्कण्डेय

हमर आये हे अतिथि नकुल ढीढी

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तोर नोहे प्रतिनिधि ह ग

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तोर नोहे प्रतिनिधि ह ग मोर नोहे प्रतिनिधि ह ग नइ जानन काकर आवे प्रतिनिधि प्रथम सुमरनि तोर नइये प्रथम सुमरनि मोर नइये नहीं तोर बस्ती, नहीं मोर बस्ती पारा -मुहल्ला के सोर नइये वो जा पहुंचे हे शिरडी सरग निशैनी चढ़ते जाथे अपन हाथ से फेर कहां खाथे नवा- नवा मितवा मिल जाथे फुरूर- फुरूर नित मजा उड़ाथे जोरा म जुरगे ओकर मति तोर- हमर मेर  बढ़- बढ़ बोले बात- बात म मिश्री घोले मुड़ डोलवा के मुड़ी डोले भरे सदन म मुंह नइ खोले कब चाहिस हमर ये उन्नति - के. आर. मार्कण्डेय

पग- पग बंधना छोरिहैं

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सतनाम सत जानिये ,  एक आस बिसवास . पग- पग बंधना छोरिहैं, सदगुरू घासीदास सतनाम ही सत्य है,  गूंजत चहुं ओर आदि काल से आत हे, सतनाम के जोर B

बारूद के ढेरी म बइठे हे दुनिया

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ये दुनिया ल तबाही के ओर झन बढ़ावव ग लड़े-भिड़े बर जादा जोर झन लगावव ग चाकू- छुरी लानेव त हसिया बिगड़ गे हे पानी बिगड़ गे हे पसिया बिगड़ गे हे मतलाहा तरिया म बूड़ झन नहावव ग काला- काला खोजत हव अउ का, का ब॒नावत हव पिरथी ल पोल- पोलहा तुम काबर बनावत हव भुज- लातुर कहुं झन तुम बलावव ग बारूद के ढेरी म बइठे हे दुनिया मद म मतंगी अउ  अइठे हे दुनिया भर के उड़ा जाही आगी झन लगावव ग - क - के. आर. मार्कण्डेय

बाबा साहेब तोर मानने वाला दुनिया म कमती नइये

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बाबा साहेब तोर मानने वाला दुनिया म कमती नइये . अतके हवे पीरा, लाचार हवे हीरा इहि कीता सुमति नइये. कोटिन नर- नारी सब तोरेच मनइय्या ये जतकां हे गरीब जग म जय भीम कहइय्या ये भूख- दुःख सहिथे, फेर बाबा साहेब कहिथे भजे म गलती नइये जतेक हे जवान पढ़े- लिखे सब जानत हे दुनिया- जहान आज बाबा साहेब मानत हे कतको झुकाथे तभू घेंच ल उठाथे जुलुम से नमती नइये बाबा साहेब तोर नाम दिनो- दिन बढ़े जात हे धरे हे पुरान तिही मन ह डरात हे पांव ऊंकर थम गे हे दांव ऊंकर थम गे हे बाढ़ हमर थमती नइये - के. आर. मार्कण्डेय

सोज नजर हमला दुनिया देखत हे आज बाबा साहेब तोर देन ए

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घेंचल उठाके आज मनखे रेंगत हे गा ये बाबा साहेब तोर देन ए सोज नजर हमला दुनिया देखत हे गा ये बाबा साहेब तोर देन ए इहां के पुरवाही, रिहिस भारी- भारी दबे रिहिन जेमा कोटिन नर- नारी नवा झकोरा आइस बेरा कलथ गे गा ये बाबा साहेब तोर देन ए रसदा छेकाये रिहिस, रीति- रिवाज म बंधना बंधाये रिहिस, सिगरे समाज म बंधना ह टूट गे,रूंधना फेकागे गा ये बाबा साहेब तोर देन ए बरस- बरस के ,नींद ल जागे हन दुनिया बसाये बर , आलस तियागे हन नवा- नवा सपना ह, जिनगी म आगे गा ये बाबा साहेब तोर देन ए - के. आर. मार्कण्डेय

बाबा साहेब अम्बेडकर जी ताेर महिमा ल गावंव कोन विधि

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बाबा साहेब अम्बेडकर जी तोर महिमा ल गावंव कोन विधि सूबेदार घर जनम धरे तैं जाति महार म जनम धरे तैं बने जगत के रहबर जी छुआछूत के दुःख तैं  झेले कठिन परन तैं मन म ले ले मेट बनाये खड़हर जी तरिया- नदिया घाट सुधारे सबे जगत के बाट सुधारे कोन करे आप से बढ़कर जी पढ़े- लिखे तैं अइसे जग में रात- दिवस तैं होके तन्मय अमर कथा तोर घर- घर जी सबे कोनो बर तैंहा बिचारे लड़े जगत म तैं नइ हारे दंग रहे सब नरवर जी जाति धर्म ईमान बचाये गांधी बबा के परान बचाये दुनिया देखिन रूककर जी भारत के संविधान लिखे शोषित मन के गान लिखे अमर भये यह लिखकर जी गौतम के तैं धरम उबारे बोधिसत्व के तैं अंवतारे सब जानिन हे उहि अवसर जी नमन करन हम तोर चरण म लाखों तरगे तोर शरण म गहे सबो ल बढ़कर जी.      - के. आर. मार्कण्डेय

सतनाम सुमर नर प्यारे

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सतनाम सुमर नर प्यारे नक़ुल ढीढी के संग मा तोर छाती म अगिन समाही अउ भक्ति बही रग- रग मा सतनाम ला सुमरन कइसे येकर कला नइ जाने ज॒गा- जगा तोर माथा झुकगे माने तैं आने- आने डर छाये हे पग- पग मां सतनाम के सांचा सुमरन अरे कहां तैं पाबे अंधरा, कनवा, लंगड़ा- लुलवा दरशन तैं बिसराबे कहां भूले हस ठग- जग मा नकुल ढीढी के कहना हे भक्ति के धारा अइसे हो छल- कपट, भेद ल दूर करे सब बस्तीं- पारां अइसे हो सत ज्योति बरे नग- नग मा - के. आर. मार्कण्डेय

माेर बाबा के मत ले नाम

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मोर बाबा के मत ले नाम काेनो दारू म बूड़े हस दाई- ददा घलो बदनाम तैं तो हवा म उड़े हस छोटे-छोटे तोर नोनी अउ बाबू काकर भरोसा म छोड़े हस दुःख म हे तोर नारी परानी मझधारा म बोरे हस अउ नशा म तंउरे हस तोर कारण संसार बिगड़ गे छोटे-छोटे तोर लइका के मन्दहा के जिनगानी धरे तैं घर होगे बिन फरिका के अउ गली म भुकरे हस काकर कुल म जनम धरे हस का तोर नाम निशानी हे जाने नहीं ते जान ले बिरथा तोर जवानी हे गुरू बानी ल बिसरे हस -के. आर. मार्कण्डेय

मोला पढ़े- लिखे बर जान दे

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छत्तीसगढ़ के बेटी अंव भारत मां के बेटी अंव ये दुनिया के बेटी अंव मोला बेटा कस सम्मान दे तुंहर दुलौरिन बेटी अंव तुंहर कोरा म खेल-कूद के भाग अपन सहराहूं दुई आखर मैं लिख- पढ़ लिहूं दुनिया नवा सजाहूं. मोला  पढ़े- लिखे बर जान दे बोझा कस झन जानव मोला मैं फुलवा कस फुले हंव सुघर- सलोना सपना के झुलना म मैं झूले हंव मोला सपना अपन सजान दे तुंहर दुलौरिन बेटी अंव - के. आर. मार्कण्डेय

चेलिक मन चेत करो

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चेलिक मन चेत करो दुनिया के दुःख हरो जिंकर तन म लोहू नइये वोमा आगी कइसे धरही अतेक बछर ल सूते रिहिन वो आगू अउ का करही ऊंकर झन आस करो. गाजर कस बाढ़े हे पीरा घर-घर म बियापे करलाई ठलहा घूमत हे टूरा अउ टूरी चिंता हे बड़ दुःख दायी इंकर बर सोच करो. रीत पुरातन बइरी बनके गली- गली म ठाढ़े हे बंधना के डोरी- दांवा ह रूंधना के तिर माढ़े हे जेला फेकव दूर करो दुनिया के तुम आंखी अव सब देखव बने- बने सब अंधरा मन के लाठी अव रेंगव तुम तने- तने बघवा मन फेट करो - के. आर. मार्कण्डेय

माेला कहना हे

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मोला कहना हे मोला करना हे तुंहर बर भाई एको दिन मोला मरना हे. तुम टुकुर- टुकुर देखत रइथौ सौ- सौ रोज जुलुम सहिथौ तुंहर असन नइ सहना हे तुम जानत हव फेर नइ बोलव मूंदे हव ऑंखी नइ खोलव तुंहर बर उघरे रहना हे तुम अपन दुवारी म सीमित हव परशंसा, पर चारी म भरमित हव तुंहर असन नइ रहना हे तुम जागे के बेरा, सोवत  रइथौ फेर करम ठठाके, रोवत रइथौ तुंहर असन नइ रोना हे तुम लड़थौ घलो, तब अपने संग कभु दाई संग, कभु भाई संग तुंहर असन नइ लड़ना हे तुम पढ़ थव तब, पोथी पढ़ थव ज्ञानी- ध्यानी, पंडित बन थव तुंहर असन नइ बनना हे - के. आर. मार्कण्डेय

तोर लहरा म तर जातेन ग

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तोला आवत जान पातेन ग रद्दा- रद्दा म फूल बिछातेन तोला मेड़ो ल परघातेन  . गावत- बजावत लातेन बन के हमर सहारा जग में धरती म पॉव जमाय रेहेव चारो मुड़ा के दीन- दुरबल ल गर म अपन लगाय रेहेव तोर चरणों म माथ नवातेन ग भाग अपन सहरातेन दुरिहा ल तुंहर बोली सुनेन तन- मन हमर जुड़ागे कहॉं हवे ये जग म रूंधना टक- टक ल झकागे तोला तिर म आज पातेन ग तोर भुजा हमु बन जातेन तुम्ही हमर बर देवता हवव तुम्ही हमर बर जोति हव सोना- चांदी, हीरा- जवाहर गजमोतियन के मोती हव तोला संग म अपन रेंगातेन ग तोर लहरा म तर जातेन.                      - - के .  आर  . मार्कण्डेय     श्री राम रतन जानोरकर पूर्व महापौर नागपुर 12 अप्रेल 1987 श्री नकुल देव ढीढी जयंती भोरिंग महासमुन्द(छ.ग.)

कदर कर ले ( करमा )

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निरमोही रे, मोर मया गाडा़-गाड़ा कदर करले थोकिन अचरा के छंइहा बसर करले संगे चारा चरत हे चीतल- चीतरी तोला रखे हंव मयारू करेजा भीतरी कदर करले उत्ती के हवा, पछित पानी झन करना तैं, मोरो करेजा चानी कदर करले तीरे- तीर डोंगरी, दुरिहा म खार मान ले मनौती, सजन गयेंव हार कदर करले आमा-  अमली झरत हे, फरत हे मउहा मोर सुरता भुलाये, लकर लउहा कदर करले हिरणी के छाती, शिकारी के बान तोर कीता जाही, ये मोर जान कदर करले - के  ़  आर  ़ मार्कण्डेय      ( छत्तीसगढ़ी गीत)