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Showing posts from February, 2018

श्रीदेवी के सम्मान म

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महानदी तैं कहाँ चले हस हस्ती ल मोर उजार के संग म ले जा आवत हौं बहिनी डोला अपन सिंगार के बड़ सुख देइस बाग बगैचा ये आमा के डारा ह रात पहागे कहत हवे चलो- चलो ये पारा ह घोड़ा- हाथी सजय बराती गली म हांका पार के टूटत हे गस्ती , छूटत हे बस्ती राम रमउवा होवत हे बड़ भुरभुरही माटी के ममता कोरी चकोरी रोवत हे मोर सुध सजन संग लागे हे का करिहौं आँसू ढार के  अलविदा - सा. के. आर. मार्कण्डेय ,छत्तीसगढ़

रायपुर हमर राजधानी

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चल चलना वाे रायपुर जाबो बड़ सुन्दर हे बाग बगीचा किंजर के दुनो आबो चल चलना वो रायपुर जाबो मोटर मंगावंव के गाड़ी म जाबो जादा नइये दूर नवा सड़क हे , नवा सवांगा नवा बसे रायपुर हमु देखि आबो वो दिल्ली कस सिंगार करत हे हमर ये राजधानी इन्द्रावती अउ महानदी के धरे हे नाम निशानी हमु देखि आबो वो ऊँचा- ऊँचा भवन बने हे रहि- रहि गगन छुवत हे फिटिक अंजोरी दुधिया- दुधिया चंदा- चंदैनी उवत हे हमु देखि आबो वो मंत्री मन के दर्शन करबोन मुख्य मंत्री के संग म राजा- परजा दुनो रंगे हे छत्तीसगढ़ के रंग म हमु भेंटि आबो वो - सा. के. आर. मार्कण्डेय

लक्ष्मण तोर संग चले म घाटा होगे

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लक्ष्मण तोर संग चले म घाटा होगे बड़े- बड़े मोर तरिया- नदिया बांटा होगे कतेक बड़े मोर डोली धनहा जेकर तुमन रेहेव किसनहा जे दिन तैं बने नंगरिहा लाटा होगे देख आज तोर खरतरिहा मन बर गाँव नंदागे गंवतरिहा मन बर मनखे- मनखे बर चांटा होगे अंग- अंग म मोर फोरा होगे जुच्छा धान कटोरा होगे पग- पग बिखहर कांटा होगे कहाँ हवे तोर सरग निशैनी फूले-फरे म लागिस मैनी चूहरी, कन्हार-मटासी, लक्ष्मी ठाठा होगे दया- मया तोर गाँव म नइये जुड़- शीत तोर छांव म नइये सबे काम म भरती भाजी-भांटा होगे दारू के नित गंगा बोहिगे पापी ल जादा धरमी तरगे आधा रात म चंदा सूमो टाटा होगे कहाँ- कहाँ के मोटरा आ गे पुरुत- पुरुत के पांव बंधागे घर भीतरी म हमर सबके सैर सपाटा होगे झन गाबे तैं गीत कहुं मेर सुनता के डांडिया रास रचावन दे बात करन दे बिनता के परे- डरे तोर मनखे जम्मो नाठा होगे - सा. के. आर. मार्कण्डेय रचना दिनांक ०७.१०. २००६

श्री ताराचन्द साहू संगे चरण मनाबो गुरू घासीदास के

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श्री ताराचन्द साहू तुम घूम फिर आहू संगे चरण मनाबो गुरू घासी दास के माटी के काया , माटी के चोला हे एक दिन बिराना , होना सबोला हे नइ समझेंन , तुम समझाहू संगे ....... गर्भवास म भक्ति कबूलेन नइ जानेन हम , जगति म भूलेन वोहि भक्ति के जोत जगाहू संगे .......... बालक पन हम खेल गंवायेन कूद- कूद खेलेन , नइ पढ़ पायेंन करण सुआ कस  पढ़ाहू संगे ........ आये जवानी , रंग म मातेन अतका मातेन , करजा ल लादेन करजा ल मुक्ति करवाहू संगे ........ आइस बुढ़ापा , बांह होगे ठुठवा पीरा सचरगे , कांपत हे घुठवा तन के व्याधि हरवाहू संगे आशा के तुम अमरित घोरेव तन ल तियागेव , धन ल छोड़ेव ये भुइंया ल तुम्ही जगाहू संगे ......... - सा. के. आर .मार्कण्डेय स्वर्गवास - 11.11. 2012  रचना दिनाँक 14.11. 2012

गुरू घासी तोर बानी अमरित

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गुरू घासी तोर बानी अमरित हे हाका पार के बलाथे सरी दुनिया ल सतनाम के अधार तुम जग ल दियो जीव जगत ल तुम अभय करेव चेचकार के रेंगायेव सरी दुनिया ल कोनो ल तुम छोटे- बड़े कभू नइ मानेव सबे ल अपन सम मनखे जानेव ललकार के बतायेव सरी दुनिया ल दया- मया एके राखेव तुम मन में बैर के बइरी बंधना टोरेव एक क्षिण में दुलार के बलायेव सरी दुनिया ल - सा. के. आर. मार्कण्डेय

गुरू घासी के बचन सिर धार ले

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गुरू घासी के बचन  सिर धार ले धरती ल अपन सिंगार ले तोर मेर मोती हे तोर मेर सोना हे गौंसर खेती हे खेती ल बोना हे नागर धर उपजार ले छोटे- बड़े सब मिल ताकत लगाना हे छाये हे गरीबी वोला दुरिहा भगाना हे तोर संग सबो ल तियार ले रसता सुघर तोर चांदी जइसे होना ग सुविधा सफर सब बांदी जइसे होना ग सब ल बने चतवार ले चलत हे दलाली तुम धरती ल बेचो झन कहाँ जाहू काली तुम काली ल मेटो झन कोरी दू कोरी बिचार ले _ सा. के. आर. मार्कण्डेय

गिरौदपुरी मेला - संतो का मिलन

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जोग नदिया म पुलिया बना दे बबा हमु आवत हवन टिकिस लगा दे बबा तोरे तपोभूमि बाबा सुध हमर लामे हे एके ठन अधारा हम ला दुनिया म थामे हे सरी दुनिया के संत मिला दे बबा जिये हन बछर दिन आ गे तोर परब ह माई- पिल्ला आवत हन करबो दरस ल असो दूर- दूर हाँका परा दे बबा उमड़े हे नर- नारी बाबा दिखत हवे रेला ह मोटर गाड़ी गज- गज होगे बाढ़े हवे मेला ह टोल पसरा ल अऊ  बढ़हा दे बबा - सा. के. आर. मार्कण्डेय ( गिरौदपुरी मेला प्रारम्भ २० फरवरी २०१७  )

तैं तो हम ला जाने साहेब अपन समान

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हे सद् गुरु तोर ज्ञान पारस के खान तैं तो हम ला जाने साहेब अपन समान न हमर ले शक्ति मांगे न हमर ले भक्ति बिन मांगे तैं बांटे साहेब दुनिया भर ले मुक्ति न कोनो ल रोके- टोके अलगे हे तोर शान एक अमरित तैं घोरे गुरू एक अमरित हम घोरेन तंहु साहेब हमु साहेब दुनो सगा जोरेन कंचन होगे काया तोर महिमा हे महान न कोनो ल नीचा जाने न कोनो ल ऊँचा न कोनो ल धोती मांगे न कोनो ल पूजा सतनाम धरम म राखेव मनखे के मान दुनिया ल जाने अपन समान - सा. के. आर. मार्कण्डेय

सतनाम धर्म

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सतनाम अर्थात साँचा नाम , सत्यनाम . स्मरण मात्र से परम संतुष्टि मिलता है . जिसे जान लेने से संसार के समस्त अबोधगम्य रहस्य खुल जाता है . मिथ्या विचार , अन्याय , अत्याचार , भेदभाव , सद् विचार , सदाचरण, कदाचरण को जानना सहज होकर समता की स्थापना के लिए आप चल पड़ते हैं . और सतनाम धर्म का उदय होता है . यह मेरा जाना हुआ है . तुम भी जानो . जानो तब मानो . मनखे - मनखे एक समान . करें सभी कल्याण . यही धर्म है . सतनाम धर्म . धर्म चार प्रकार का होता है- दान , शील , तप और भाव . चारो में भाव श्रेष्ठ है  ़हमारा भाव श्रेष्ठ है - मनखे - मनखे एक है . इसके बिना दान , शील, तप का कुछ अर्थ नहीं है . धर्म को जिव्हा से नहीं , जीवन से व्यक्त होना चाहिए .

गऊ जैसै नर

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डरता है कौन ? लड़ता है कौन ? जिसको है डर डरता है वो जो भी नर लड़ता है वो नारी भी लड़ती है मर्दानी होकर रास्ते के पत्थर को देती है ठोकर जुल्मी सियासत से लेती है टक्कर जीते या हारे बताती तो है हक लिए एेसे लड़ो सिखाती है वो गऊ जैसै नर जो लड़े न भिड़े उन से भली जो नारी लडे़ - सा. के. आर. मार्कण्डेय

काेन हवे सगा गरीबी के

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काला कहंव काला नइ कहंव काहीं केहे म ग थोरको भलाई नइ दिखे कोन हवे सगा गरीबी के हमरो नजर म नइ दिखे काया दंदर गे कमाई म हम नइ जानन ग ये कोन जनम के भुगतना ये पीरा सचर गे दवाई म जीव कापत हे ग फेर कइसे जगत बीच रहना हे भुइंया ह माेर बिझौना हे आकाश बने हवे छानी ग जेला कइसे कहंव सुन लेहू भइया ज्ञानी हो आनी- बानी के हवे कहानी ग जेला कइसे कहंव - सा. के. आर. मार्कण्डेय

शिव भोला

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शिव भोला तोला दुनिया गंजहा बनादिन तोर मरम नइ जानिन तोला डमरु धरादिन आदिदेव अव तुम भारत के तोर चिन्हा हे बिना स्वारथ के बेरा म तोला जहर पियादिन हम नइ जानन अउ का होगे भूत परेत संग तोला बरोके अपन दुनिया चिक्कन मांगिन तोला येमन उघरा राखिन अपन तन  मलमल के साजिन कार के घुमैया तोला नंदी चढ़ादिन - सा. के. आर. मार्कण्डेय

चलना चले परदेश

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ये गुंइया रे चलना चले परदेश पारा- बस्ती , पीपर गस्ती मन ल देवत हे कलेष ये बस्ती म अब का राखे हे मया के सरोवर मतलागे हे लगे हे करेजवा म ठेस बेरा परे म इहां , सबे छरियागे तीरे- तीर राहे उहू , मन दूरियागे हँसि- हँसि देखत हे बिसेस घर भीतरी म देखेन , बइरी के बासा करके बिगाड़ सरी , देखथे तमाशा जेमा गाड़ा- गाड़ा भरे हे संदेश - सा. के. आर. मार्कण्डेय

नौकरी लगादे जतन करके

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लइका ल पढ़ाये जइसे मन भरके वोला नौकरी लगादे जतन करके मुँह ल उतारे वो हा अली- गली घूमत हे कतका हे बोली कहिके संगी मन ला पूछत हे वोकर संसो मेटादे काहीं करके तन सुखियार ओकर दुधरू जवानी हे वो ही तो असल हमर धन अउ दोगानी हे ओकर जिनगी बनादे थोर बाहीं धरके आज के दयालु साहेब संदेशा भेजाये हे बिहने जरूर तोला बंगला बलाये हे पान- फूल चढ़ादे तहुं बाढ़ी करके - सा. के. आर. मार्कण्डेय

कहाँ जाबे संगी बताना रे

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तोर जीव के अधारा धरती बेच डारे कहाँ जाबे संगी बता ना रे दाई- ददा के कहना भुलागे जग उभरौनी म कइसे तैं आ गे पग- पग ठोकर खा ना रे भाई- बंद बस्ती के मया नइ जाने ग पसर भर पइसा म बनगे बिराने ग का होय अब पछताना रे यूपी बिहार जाना ले लेबे किसानी ग देख लेबो हमु कइसे होथे तोर मानी ग थोथना ल झन ओरमाना रे - के. आर. मार्कण्डेय

तोला साबर धरे ल नइ आवे मीत

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तोला साबर धरे ल नइ आवे मीत धीरे धीरे तोला माटी कोड़े ल नइ आवे मीत धीरे धीरे चल साबर धरे ल सीख धीरे धीरे चल माटी कोड़े ल सीख धीरे धीरे सीखे सीखे मन मजा उड़ावे दुनिया ल डारिन जीत धीरे धीरे पांव ल अपन धरती म राखव बल भर भुजा उठावव दुनो नयन के जोति साधव माटी म मिल जावव माटी ल बना ले मीत धीरे धीरे दुनिया म इहां  लाखों बुता हे हवे लाखों तरा के सियानी तोर करम म झन लिखना तैं अड़हा के जिनगानी ये हा नोहे भड़ौनी गीत धीरे धीरे - सा. के. आर. मार्कण्डेय

गुरू के चरण बलिहारी संतो

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गुरू के चरण बलिहारी ग संतो गुरू के चरण बलिहारी चरण गति महिमा नियारी ग संतो गुरू के चरण बलिहारी बिना गुरू ज्ञान न होवे ज्ञान बिना हंसा रोवे ज्ञान बर दिया लियों बारी ग संतो सदगुरु तोरे किरपा समर हे तोरे बचन धन धरम हमर हे जग म फिरव अब वारी ग संतो - सा. के आर. मार्कण्डेय

हमर जिनगी के करुण कहानी

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हमर जिनगी के करुण कहानी हे ग जइसे मतलाहा खुदु खादा पानी हे ग तभू छाती म दस ठन परानी हे ग नइये उमंगी , नइये जवानी खेति खार बंजर , उजरे हे छानी इहि अब हमर निशानी हे ग संसो हमर भइगे सदा संगवारी करजा अऊ लागा के लगथे तुतारी तभु घर म झलकथे फुटानी हे ग कोनो ह हमर होही , हम नइ जानन दुनिया के रंग- ढंग , कइसे बखानन सब रातो- रात होगे , इहां ज्ञानी हे ग नत्ता- रिश्ता हमर , बनगे पराया भागत हे धरती , अजब हवे माया झूठ- मूठ घलो अब मितानी हे ग - सा. के. आर. मार्कण्डेय ( रचना 28 /02/ 2003 )

ये बसती हमर हसती हे

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जिद छोड़ , मयारू मोर कहुं नइ जाना हे . ये बसती हमर हसती हे इहें जिनगी बिताना हे मन ल मारे काबर रइथस काबर कहुं जाबो कइथस का नइ तोर बसती में का नइ तोर हसती में डारा कहिबे डारा हवे पाना कहिबे पाना हे पीतर हवे , मातर हवे पुन्नी के हे मेला पांव पुट संगवारी पाबे लागे नहीं अधेला हाँसी कहिबे हाँसी ले ले ताना कहिबे ताना हे खेति हे तोर अपन सेती जांगर टोर कमाले तोर भरोसा मांगत हे तैं हवस बल वाले धरती के दुलरवा तैं हा अइसन तोर बर हाना हे -

छुट्टी नइ मिले डिपाट म

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छुट्टी नइ मिले डिपाट म घर कइसे के आवंव सरी बुता हवे मोर हाथ म तोला काला बतावों रे यार बड़े- बड़े बर , बारो महीना छुट्टी हमर बर  नइये राखे हवे मजदूरी म हमला कांही केहे म वो भला नइये हम जीयत हवन बाई ख्वाब म तोला काला बतावों रे यार राजा के होथे चढ़ौतु घोड़ा वइसने हमर दशा हे दसो दुवारी म सेवा लिखे हे प्यारी- प्यारी कथा हे अधिया गेन बाई रुवाब म तोला काला बतावों रे यार सरी- सरी रतिहा , सरी मंझनिया होवत रइथे बलऊवा बड़े बिहिनिया हाँका परत हे जाना हे वो बाई बंगला भाजी- पाला लिखे हे किताब म तोला काला बतावों रे यार - सा. के. आर. मार्कण्डेय

छत्तीसगढ़ी गीत कोन जनी

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कोन जनी काबर तैं नराज हवस तोर नराजी घलो मनभावन हे मीठा- मीठा बोली हम भर पाये हन करु भाखा घलो तोर सुहावन हे तैं बलाये रेहे , मैं नइ आयेंव तोर शोर संदेशा , नइ पायेंव नइ जानेव के , तोर बुलावन हे ऐति देख तो मैं , का लाये हंव बड़ा मुश्कुल ले , मोती पाये हंव मानो तो मोर मनावन हे तोर बर मैं , सोंहारी ल लाने हवंव चना भाजी , अमारी ल लाने हवंव हाँसी आ गे त बाकी दिखावन हे -सा. के. आर. मार्कण्डेय

कतेक सताबे गोरी मोला रे

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कतेक सताबे गोरी मोला रे कतेक सताबे गोरी मोला एक दिन मना लुहूँ तोला रे नइते छूट जाही रटहा ये चोला रे ऐति बलाथंव त वोति चले जाथस हाँसि- हाँसि , मुच- मुच तैं इतराथस काहीं लागे नहीं बाई तोला रे दवा- दारु लहे नहीं , अइसे तोर काम हे मोर जिनगानी बही , बस तोर नाम हे मारे- मारे फिरत हवंव , धरे तोर डोला रे तैंहाँ कभू माने नहीं , तोला मनावंव का छाती ल चीर के , तोला देखावंव का कते नस म फंसे , तोर झूला रे - सा. के. आर. मार्कण्डेय

नकुल देव ढीढी तोर जमाना आने वाला हे

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नकुल देव ढीढी तोर जमाना आने वाला हे दुनिया म इहि बोल बाला हे गाँव- गाँव म तोर जुरही समाज ह समता- नियाव के उभरही आवाज ह अब के हिलोर ह निराला हे तोरे सहीं हमु मन करबो विचार ल रात- दिन करबो सत के प्रचार ल खुलही किवांड़ जिहां ताला हे छल- बल वाले के हरबो सियानी ल सारे- सार समरथ करबो जवानी ल भीम गरजना होने वाला हे - सा. के. आर. मार्कण्डेय