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Showing posts from March, 2018

मन के मंदिर म तोला बइठारौ

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मन के मंदिर म तोला बइठा के ये मोर गुरू हो साहेब भंव - भंव आरती उतारंव

तुम बइठो गुरू आसन म

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तुम  बइठो गुरू आसन म साहेब तोर आसन लगे गायिका - उ षा बारले

अइसे गुरू वाणी हमारा हे

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सतनाम धरम हमला प्यारा हे ये दीन- दुखीन के सहारा हे दुसर सहारा ल देखि डारेन चौबीस अवतारा ल देखि डारेन ये सब दूर किनारा हे ये मनखे के गरिमा नइ जानिन हम ला कभू मनखे नइ मानिन छुआ-छूत बिस्तारा हे सतनाम धरम के कहना हे दुनिया म कहुं ल नइ रहना हे फेर नेह समुंद क्यों खारा हे सतनाम धरम सब ल कहिथे दुनिया म सबो के जश रहिथे अइसे गुरू वाणी हमरा हे - सा. के. आर. मार्कण्डेय

गुरू घासी दास जी

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गुरू घासी दास जी तोर चरणों में हमर विनती हे झन टूटे आस जी तोरअपनो के अतके अरजी हे गर म अपन हम सबे ल लगाथन संग म अपन हम सबे ल रेंगाथन ऩइ मिले रास जी दुःख ल अपन हम सब ल देखाथन मन के दरद घलो हँस के बताथन बन जथे फाँस जी सत म केहे ते हम सते गोठियाथन पुतकी असन झार झूठ ल भगाथन इहि हवे खास जी - सा. के. आर. मार्कण्डेय

हमर गुरू के जयंती ल निकाले नकुल ढीढी

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तैं थके हारे लोग सम्हाले नकुल ढीढी हमर गुरू के जयंती ल निकाले तैं हम ला बनाये बल वाले नकुल ढीढी हमर गुरू के जयंती ल निकाले गुरू घासी दास के महिमा ल जाने तैं गिरौदपुरी के कीरति बखाने तैं वोला धरे हे दुनिया वाले सन् १९३८ म जयंती मनाये तैं ग्राम भोरिंग म सब ल बलाये तैं जेला देखिन दुनिया वाले रचना  -  सा. के. आर. मार्कण्डेय गायिका - श्रीमती उषा बारले

गुरू घासी दास जयंती ल मनावत हे नकुल ढीढी

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गुरू घासी दास जयंती ल मनावत हे नकुल ढीढी सोये- सोये बघवा जगावत हे नकुल ढीढी रचना- सा. के. आर. मार्कण्डैय

वीर बलिदानी गुरू बालक दास

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वीर बलिदानी गुरू बालक दास तोर वन्दना हे आज तुम्ही हमर धरती तुम्ही आकाश तोर वन्दना हे आज समाज  शहादत के याद में रैली लेकर निकल पड़ा है ३.०० बजे खम्हरिया , धनोरा जिला दुर्ग ,छ.ग. में स्वागत कार्यक्रम होगा स्मृति गीत सुने संयुक्त रचना -  के.आर. मार्कण्डेय एवं श्री यशवन्त सतनामी     

तोर दिल में हल चल होत होही मोर मया के कोनो बात ह

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हम मन की बात सुनते रहे अच्छा लगा अब दिल की बात

रात दिन हर्रो- हर्रो

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रात दिन हर्रो - हर्रो कब तैं मया करबे पेरौसी असन जाने मोला काबर तैं दया करबे क्या अर्थ हुआ ? जीवन के भाग- दौड़ जीवन संगिनी बंदिनी सी जीने काे बाध्य है अपने तिरस्कार को व्यक्त कैसे करे ? वह गा ये , तो रुदन है आप सुने , शेयर करे, कमेंटभी - सा. के. आर. मार्कण्डेय

बड़ा जादु वाला पंथी नर्तक स्व. देवदस बंजारे

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बड़ा जादु वाला रेहे देवदास बंजारे तोर मोहनी अभू हवे देवदास बंजारे

हमार गीत

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तुम सांगर- मोंगर दिखत हौ हम पातर- सीतर दिखत हन तुम जुरे- जुरे दिखत हौ हम तीतर- बीतर दिखत हन ये दिखना म झन जाबे नइते रे धोखा खाबे कुछु कहत हन तुम सुन लेव ग मनखे म हमु ल गिन लेव ग ये रुंजु धरे मांगत हन तुम जागे हव , हम जागत हन तैं जागे झन इतराबे नइते रे धोखा खाबे तुम डोली डांगर वाले अव हम सांप- बिछु सन रइथन तुम तानोमहल अटारी हम साजो , साजो कइथन तुम बेरा म सुख पाथव हम डेरा म  सुख पाथन तुम जूठा काठा देथव हम मांग जांच के खाथन ये मंगनी म झन  जाबे नइते रे धोखा खाबे - सा. के. आर. मार्कण्डेय

अकड़ टूट जथे

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अकड़ टूट जथे अकड़ टूट गे संगवारी छूट जथे संगवारी छूट गे येकर नाम दुनिया हे

दुनिया म हमर संगी नइये ग

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मिनी माता गये हे संवार के भाई सबके जिनगी सुधार के दुनिया म हमर संगी नइये ग वो ह रोये हे डंड फुकार के एक अकेला हमआयेन जग में अऊ खुद ल अकेला हम पायेन जग में सरी दुनिया के मेल मिलाप में हम रहि गेन हस्ती ल हार के हमर दुःख - दुविधा ल देखे अउ जाने हे अचरा म अपन सुख- सुविधा ल लाने हे येला लानेव बेटा बड़ मुश्किल में रखिहौ तुम धन ल संभार के छल - बल वाले सब छल- बल करही पुरखा कमाये रही हक तोर मरही करम गति लिखही गुलामी ल भाई पीढ़हा ल तुंहला उतार के - सा. के. आर. मार्कण्डेय

मिनी माता के जागव लहरिया मन

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मिनी माता के जागव लहरिया मन जम्मो पसिया पियैया छत्तीसगढ़िहा मन बड़ा मुश्किल से राज नवा पाये हन पुरखा के अपन हम चिन्हा बनाये हन इहाँ करव ग जतन खरतरिहा मन सुमत अउ सुनता म कर लेव सियानी ल दुनिया म राखव अपन नाम निशानी ल अन- धन उपजावो नगरिहा मन नदी - नरवा म भाई बांध बनाबो ग बनी भूती , रोजी- रोटी सब ल देवाबो ग अब हरियाही रे भाई परिया मन ज्ञान के मशाल धर के , गढ़बोन भाग ल भूख अउ गरीबी के , नाथबोन नाग ल नवा जोत जगाबोन भाई कुरिया मन - सा . के. आर. मार्कण्डेय

कोन हे कसूरवार सवाल उठही

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दसो दिशा ल आवाज उठही गुरू घासी बबा के समाज उठही जागो सोवइय्या मन आलस तियाग के कतका हमर अउ भाग रूठही पांव तरी दुनिया दबाये हवे हमला सुख ल नंगाके बनाये हवे कंगला कोन हे कसूरवार सवाल उठही बेरा कलथ गे हे अब के सुराज में पुरवाही बदल गे हे जनता के राज में बेड़ी पुराना सब आज टुटही चंदा- सुरूज , धरती- भुइंया ल मांगबो अंधियारी घर म अंजोरी ल लानबो चारो चंहुदिश म हमरो आवाज गूंजही नीति नियाव होही , सिगरे समाज बर कोनो नइ भटके , महिनत अउ काज बर संसो- फिकर के रिवाज छूटही - सा. के. आर. मार्कण्डेय

मोला कहना हे संत समाज ल

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मोला कहना हे संत समाज ल तुम बदलो अपन आज ल ये धरती के राजा तुम हो दूसर झन पहिरे ताज ल माटी कोड़ो , जांगर तोड़ो महिनत से तुम , नाता जोड़ो चु हे पसीना  तन ल , थप- थप करम के मोती गाथा जोड़ो सुख निंदरी के सेज सोवइय्या देखे तुंहर काज ल आय ल जादा खरचा करथौ लागा बोड़ी करजा करथो बरे बिहाती घर म रोवे बहिरासू के दरजा करथो बरजय्या के बोली कांपे देखे तुंहर मिजाज ल बने- बने मन साधु बन गेव दाई- ददा बर तुमन तनगेव करम करे के बेरा कइसे महिनत ल तुम पाछु टरगेव तन- मन साधो सहजे साधु बदलो रीति रिवाज ल खान- पान तोर बिगड़िस काबर दुनिया करथे लिबिर- लाबर मन चंडाली बइरी होके तुमला बिगाड़े नौ मन आगर बेरा संभले के आ गे अब रोको सब खड़बाज ल पढ़े- लिखे विद्वान बने हौ थोकिन झुकव काबर तने हौ ये समाज के करता- धरता मुंह बांधे अनजान बने हौ तुम ठानव ते परलय होही मिल के करो आवाज ल - सा. के. आर. मार्कण्डेय

सुरूज बाई खाण्डे तिही अमर फल पाये

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सुरूज बाई खाण्डे वो सुन लेना का का होवत हे तोर सुरता म कोन- कोन रोवत हे जे रोवत हे , उही जागे हे बाकी सब तान के सोवत हे सुरूज बाई खाण्डे वो तोर घोड़ा रोवत हे , घोड़सारे म तोर हाथी रोवत हे , हाथीसारे म तोर रानी रोवत हवे , महलो म तोर राजा रोवत हे , दरबार म सुरूज बाई खाण्डे वो अइसे का मोहनी रेहे डारे अइसे का जोगनी रेहे बारे गोदी माटी करत - करत तीनो लोक जीत डारे सुरूज बाई खाण्डे वो राजा भरथरी संग तैंहा काल मिरगा मारन गेये मिरगीन के  दुःख भारी तैं सौंहत देखे रेहे सुरूज बाई खाण्डे वो बबा गोरखनाथ जगाये तैं अमर फल ल पाये तैं पानी पियाने वाली दुनिया म नाम कमाये सुरूज बाई खाण्डे वो रानी रोवत हवे पिंगला तैं छोड़े हवस हमला तोर रहत ल धनी रेहेन अब हो गयेन हम कंगला सुरूज बाई खाण्डे वो हम अंधरा कहाँ जानेन तोला चिन्हेन न पहिचानेन तोर गोदी म नइ खेलेन तोला  दाई घला नइ मानेन सुरूज बाई खाण्डे वो दुनिया के रीत इही हे तोर कहना सार सहीं हे अउ आबे दाई दुबारा अरजी हे अउ विनती हे सुरूज बाई खाण्डे वो स्वर्गारोहण - 11 मार्च 2018 विनम्र श्रद्धाजंलि - के. आर .  म

ददरिया

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आनी- बानी के गोठ तोरेच मेर हे जइसे कड़कदार नोट तोरेच मेर हे नवा छाता , नवा कोट तोरेच मेर हे राजधानी के पूरा वोट तोरेच मेर हे तोला खुले जवानी रे यार नजरे- नजर के करके इशारा मोटरा म मया भेजे , मोला गाड़ा गाड़ा बोली तोर , छतिया के पार होगे हे कोन ल कहंव , मोला प्यार होगे हे संझाके बेरा , चिरैया उड़े जात हे तोर आँखी बोलत हे , जरूर कोनो बात हे तरिया के तीर- तीर , डबरा बने मोर बुद्धु सजन , मिठलबरा बने तोला खुले जवानी रे यार - सा. के. आर. मार्कण्डेय

बनिहार संग मया

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🚆👪🎢🎢🏭🚌 बनिहार संग मया झन बढ़ा ना गोरिया दुई चार दिन म , हताश हो जबे दुःख पाबे थोरको , निराश हो जबे बनिहार संग मया झन बढ़ा ना गोरिया लड़की-  मया बाढ़ि गे हे राजा , बढ़हाहूं काला रे दिल हार गे हवंव , दूसर लाहूं काला रे दुःख आवे हजार , घबराहूं काला रे मया बाढ़ि गे हे राजा , बढ़हाहूं काला रे लड़का बनी- भूति वाले संग , का सुख पाबे तैं हीरा जनम गोई , बिरथा गंवाबे तैं रोवत- रोवत चऊमास हो जबे बनिहार संग.... लड़की कोन बनिहार नोहे , मोला तैं बताना रे राज- पाट होही तेकर , का हे ठिकाना रे मन तो गंवागे , अऊ गंवाहूं काला रे मया बाढ़ि गे........ लड़का अइसे तोर गोठ लागे , मोरो मन के बात हे लड़की कइसे समझावंव तोला , मन के बरात हे लड़का सपनाये बर करे , मोला मतवाला वो लड़की मया  बाढ़ि गे हे बढ़हाहूं काला रे - सा. के. आर. मार्कण्डेय          

गाड़ी घोड़ा बिना रेंगना रेंगाय नहीं

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गाड़ी घोड़ा बिना रेंगना रेंगाय नहीं रे आज दंगर- दंगर मनखे कहुँ जाय नहीं रे जमाना सुखियार दंगर- दंगर मनखे कहुं जाय नहीं रे दिखे नहीं उही झूल- झूल के रेंगना मोटर चढ़- चढ़ , आवत हे पहुना मोटर म घलो समाय नहीं रे बिन जाने चिन्हे , मिल जाथे ठक ले अंगठा देखावत , खड़े हे सड़क में कहाँ आना- जाना बताय नहीं रे भरे जवानी म , नव गे हे कनिहा पाके- पाके चूंदी , रंगावत हे गियाँ पोते हे केरवछ लुकाय नहीं रे रेंगना असल हे , भुलाना नहीं किंजर आबे दुनिया , लजाना नहीं पुरखा के सुरता भुलाय नहीं रे - सा. के. आर. मार्कण्डेय

पाकिस्तान ने दलित महिला राज्यसभा पहुंचाया छत्तीसगढ़ में दलित के सीट पर हो रही अन्य की ताजपोशी

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पाकिस्तान में दलित महिला वहाँ की राज्य सभा सदस्य चुनी गई. एक बड़ी खबर है. भारत के लोगों खबरदार करती है . दलितों को उनका हक मिलना चाहिये .  छत्तीसगढ़ में अनु. जाति का राज्य सभा का एक सीट रिक्त हुआ है .  ऐसा लग रहा है , इस बार इस संवर्ग से प्रतिनिधित्व छिन जाय.  छिनना नहीं चाहिये . ये और बात है कि यहाँ सब जायज है . लोग तैयारी करते है़ं दलों की अपनी नीति और प्राथमिकतायें होती है . परन्तु कल की ब्रोकन ह्युमिनिटी आज अपनी अस्मिता के लिये  सजग जान पड़ती है . अंतिम क्षणों तक उम्मीद को जगाये रखना होगा बरकरार रखना होगा .

श्रीदेवी तोर सुरता

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श्रीदेवी तोर सुरता भुलाये नहीं या काल घलो मेटही ,  मेटाये नहीं या छुनुर- छुनुर , तोर पैरी बाजत हे रेंगना म तोर , सरी धरती नाचत हे बिजली कडक , गिर जाये नहीं या नैन कटारी , तोर छाती बेधत हे जइसे आगी ह ककरो , करेजा लेसत हे सदा भभकत रही , बुझाय नहीं या तोर जाना ह , अइसे गवाही हरे तोर लइक नइ रेहेन , बने करे फेर अइसे तो कोनो ह , जाय नहीं या - सा. के. आर. मार्कण्डेय छत्तीसगढ़

तोर बिना

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तोर बिना चंदा- चंदैनी लागे अनबोलना निचट उदास लागे घर- अंगना बीच डगर म तैं संग मोर छोड़े हस बइरी बना के तैं मुखड़ा ल मोड़े हस परी बरोबर तैं छाये रेहे उंगली म मोला नचाये रेहे तोला देखे ते देखते  देखत रहि जाय बिना पानी के  मछरी तड़फत रहि जाय तोर लाखों दीवाना ल का कइहौं तोर पता ठिकाना ल का कइहौं तोर जाये से मोर तो सबे चल दिस आँखी होगेअंधरा , यहु छल दिस - सा. के. आर. मार्कण्डेय

होरी आगे दनादन कसो नंगारा ल

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होरी आगे राजू लाल दनादन कसो नंगारा ल ये गली के भाटो ल वो गली के सारा ल ये टूरी गड़ौनी ल बड़े भाटो के बहिनी ल रंग डारो लाले- लाल दनादन कसो नंगारा ल सराररा , सराररा सरा ररा हे कबीर के लाली- गुलाली म रंग डारो उतरे झन रंगअबीर के लगे रहे पूरा साल बड़ मन भावन ,सबे सुहावन चिखला माटी तिहार ऐ खेलत रंग म मया होरी कबीरा खड़े बजार हे किड़- किड़ बाजे ताल बृन्दाबन के टूरा बने हन धरे हवन पिचकारी ल राधा के छिनी आधा नइये सुनबो ओकरो गारी ल गारी म हवे कमाल - सा. के. आर. मार्कण्डेय