हाँसी नंदागे काबर मोर गाँव म

पीपर , आमा ,
 कदम रुख छाँव म
बइरी हाँसी नंदागे
काबर मोर गाँव म

शहर म समा गे सबे खेतिखार
कमइय्या के जांगर होगे बीमार
नाचा- बाजा ल होगे तीजरा बुखार
नाव भर के रहिगे सरी तिहार
बेड़ि लगे हे जस पांव म

चरचिर ले लइका मन खेलत हे दुवारी में
दाई भुलाये हे दुनिया के चारी में
संगी- जहुँरिया मन माते हे मस्ती में
रद्दा लजाये हे बिकलांग गारी में
वो पासा हलावत बइठे हे दाँव म

कतको झन के हाड़ी रीता परे हे
केउ- केउ दिन में ग चुल्हा बरे हे
रहन म बुड़गे सबो टठिया- बरतन
ठुठवा बरोबर तन ल करे हे
पथराये आँखी हे अंतस के घाव म
रचना दिनांक 04 .09.1999 सा. के. आर. मार्कण्डेय

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