बूझो- बूझो गोरखनाथ अमरित बानी जी

बूझो-बूझो गोरखनाथ अमरित बानी जी
कइसे मनखे ल बने हे , कुकुर के जिनगानी जी

धोवा के धोती पहिरे मोती , सेज सुपेती म सोथे
सोन के थारी म , हब- हब खाथे
ऐति भूखन म लाखो रोथे
बड़ा करुण कहानी जी

बड़े- बड़े मनखे सपना देखिन , मर के देवता होगे
धनी हे धरती जागो कहिगे , गरीबी जनता भोगे
मांगे मिले नहीं ग पानी जी

कुकुर पोसइय्या बड़े कहाइन , मनखे ल दुर्राइन
घुर-घुर के इहां जीने वाला , तभो ल नइ गुर्राइन
नइये मुँह म बानी जी

- सा. के. आर. मार्कण्डेय

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